यह झूठ नहीं है, सच है कि 'विकास' हुआ है। 2014 न आता और जो आए, वे न आते, तो 'विकास' न होता। किसी को शिकायत हो सकती है तो यही कि इधर 'विकास' ही विकास हुआ है और कुछ नहीं हुआ है। करने दो, शिकायत से क्या होता है? निवेदन करने से क्या होता है? जो होता है, भय और आतंक से होता है और उसका 'विकास' हुआ है। हिंदू - मुस्लिम का तो इतना अधिक 'विकास' हुआ है कि बीसवीं सदी को डर लगने लगा है कि कहीं इक्कीसवीं सदी उससे बाजी न मार ले जाए, उसे नीचा न देखना पड़ जाए!
पिछले दस वर्षों में प्रधानमंत्री के वचनों और 'ज्ञान' और फोटो और उनकी देश- विदेश यात्राओं का इतना ज्यादा 'विकास' हुआ है कि 'विकास' शब्द उसके लिए बहुत छोटा बल्कि बौना लगने लगा है। मंदिरों और बाबाओं और अंधविश्वासों का 'विकास' पहले कुछ बाधित था, अब इतना अधिक 'विकास' हुआ है कि बाबा ही बाबा, मंदिर ही मंदिर, अंधविश्वास ही अंधविश्वास चहुंओर है।
डॉलर के मुक़ाबले रुपया इतना गिरा है, इतना गिरा है, इतना गिरा है कि उसके गिरने का 'विकास' हुआ है। महंगाई और बेरोज़गारी का 'विकास' जितना इस युग में हुआ है, पहले कब हुआ था, कोई इतिहासकार भी बताने की स्थिति में नहीं है!
इतना अधिक 'विकास' हुआ है कि 'विकास' का बोझ ढोते- ढोते लोगों की चीं बोल गई है। फिर भी 'विकास' का हौसला पस्त नहीं हुआ है। यही इस 'विकास' की सबसे खूबी है। आईआईटी पास पहले चाहकर भी बेरोजगार नहीं रह पाते थे, अब आराम से रह रहे हैं। 'विकास' हुआ है। नोटबंदी ने बहुत से काले को इतना अधिक उजला कर दिया है कि अब जो बचा है, बढ़ा है, काला होकर भी उजला ही उजला दिखता है। काले का नामोनिशान मिट गया है। इसी को कहते हैं, 'विकास', जो कि हुआ है!
पहले राममंदिर नहीं था, अब है। पहले अयोध्या में पहले 25 लाख दिये दीपावली पर एकसाथ नहीं जलते थे, अब जलते हैं। बुझे हुए दीयों से गरीब तेल निकाल कर उसका साग -सब्जी बनाने में उपयोग करते हैं, अब कर रहे हैं।
'विकास' मंदिर का भी हुआ है, दीयों का भी हुआ है और 80 करोड़ को मुफ्त में अनाज देने के बावजूद गरीबी का भी हुआ है। त्रिमुखी 'विकास' हुआ है। चौमुखी 'विकास' होगा, जन- जन को इसकी आशा और विश्वास है।
यह 'विकास' नहीं है तो क्या मेरा सिर है? पहले अयोध्या में राम पथ था? नहीं था। अब है और बनते ही पहली बरसात में उसमें बड़े -बड़े गड्ढे पड़ गए। राम पथ न बनता तो गड्ढे कहां पड़ते, गड्ढों को 'विकास' का अवसर इस सरकार ने भरपूर दिया है।'विकास' हुआ है।
पहले इतने मंदिर नहीं थे और थे तो इतने भव्य नहीं थे, इतने सजे हुए नहीं थे। अब मंदिर ही मंदिर हैं, मंदिर कॉरीडोर ही कॉरीडोर हैं। महाकाल लोक में लगी मूर्तियां हवा में उड़ गईं, मूर्तियों का उड़न क्षेत्र में विकास हुआ है। 'विकास' के नये चरण का विकास हुआ है। ऐसा नहीं कि पहले देश में प्रधानमंत्री नहीं हुए थे। हुए थे पर 24 घंटे अपने गाल बजाने वाला प्रधानमंत्री पिछले 72 साल में कोई हुआ था? नहीं हुआ था। इसे क्या देश के 'विकास सूचकांक' से खारिज किया जा सकता है?
पहले की सरकारों के पास अपने केवल दो भोंपू हुआ करते थे- एक दूरदर्शन और एक आकाशवाणी। अब तो हर भाषा का हर समाचार चैनल, हर अखबार, सरकार का ही नहीं, हिंदुत्व का भी बड़ा भरोसेमंद भोंपू है। भोंपुओं का सुबह से शाम तक, शाम से रात तक, रात से सुबह तक 'विकास' हुआ है। उन्हें गोदी चैनल जैसा राष्ट्रीय सम्मान पहले कब मिला था? कभी नहीं। 'विकास' हुआ है।
पहले व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी कहां थी? उसकी स्थापना इस सरकार के आने के बाद हुई।अब तो हम 'गर्व' से कह सकते हैं कि उससे बड़ी यूनिवर्सिटी विश्व में कहीं नहीं है। शिक्षा का वह स्तर, जो वहां है, कहीं नहीं है। वह स्थापित हुई तो झूठ का चौतरफा विकास हुआ। कब से झूठ बेचारा 'विकास' की नई मंजिलें छूने को बेताब था। अब उसे सुनहरा अवसर स्वयं प्रधानमंत्री ने दिया है। धन्य भाग्य झूठ के, उसे प्रधानमंत्री का आशीर्वाद प्राप्त हुआ है। उसकी तो पौ- बारह हो गई है। उसका तो विकास ही विकास हुआ है। 'विकास' को भी नहीं मालूम कि उसका इतना 'विकास' किस दिशा में कितना हुआ है और जो हुआ है, वह 'विकास' ही है या और कुछ है!
हुआ है, हुआ है जी, 'विकास' ही हुआ है। बहुत कुछ हो सकता था मगर 'विकास' निश्चित रूप से हुआ है।
पहले गोबर और गोमूत्र का सेवन स्वल्प था, अब प्रभूत है। खाने में, पीने में, नहाने में सब तरफ उसका 'विकास' हुआ है। पहले लाभार्थी नहीं होते थे, अब होते हैं। 'विकास' हुआ है।
पहले इतना 'विकास' नहीं था तो इतने ठेकेदार भी नहीं थे, अब ठेकेदारों का चहुंमुखी - बहुमुखी-अंतर्मुखी-बहुर्मुखी 'विकास' हुआ है। पहले जो काम ठेकेदारों के बगैर हो जाते थे, अब नहीं हो पाते। अब तो सरकार भी ठेकेदारों को चलाना पड़ रहा है। 'न्यू इंडिया' बना है, 'विकास' हुआ है। पहले ईडी का नाम इतना फेमस नहीं था, अब तो वह उतना ही फेमस है, जितने हमारे प्रधानमंत्री!
पहले भी कलयुग था, अब भी कलयुग है। प्राचीन कलयुग में बुलडोजर बाबा नामक कोई बाबा नहीं था, अब है। पहले कोई नान बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री नहीं था, अब है। पहले इतने पेपर लीक नहीं होते थे, अब होते हैं। पहले प्रधानमंत्री की आलोचना को आलोचना माना जाता था, अब उसे नफरत फैलाना माना जाता है। 'विकास' हुआ है। मैं डेढ़ सौ बार कहने को तैयार हूं, 'विकास ' हुआ है। इससे ज्यादा कहूंगा तो मेरा भी 'विकास' हो जाएगा। मैं नहीं चाहता, मेरा 'विकास ' हो। मुझे 'विकसित भारत' का इंतजार नहीं करना है।
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