एक साहित्यानुरागी नौजवान दोस्त ने कई साल पहले मुझे आपबीती सुनाई थी। कवि टाइप दो बुजुर्ग उसे बियर पिलाने के बहाने फुसलाकर किसी पब में ले गये और बारी-बारी से अपनी कई कविताएं सुना डालीं।
जब नौजवान के कुछ कहने की बारी आई तब तक नशे में दोनों बुजुर्ग कवियों की बत्ती गुल हो चुकी थी। त्रासद कथा का अंत यह है किस्मत के मारे उस नौजवान के कलाम होठों पर धरे रह गये और बियर के पैसे भी उसे अपनी जेब से भरने पड़े।