आपने पढ़ा होगा, शायद वीडियो भी देखा होगा। 25 दिसंबर को अटल बिहारी वाजपेयी की जन्मशती के अवसर पर पटना में कार्यक्रम एक भाजपाई नेता ने आयोजित किया था। मंच से लोक गायिका देवी ने कार्यक्रम में गांधी जी का एक प्रिय भजन 'रघुपति राघव राजा राम' गाना शुरू किया। इस भजन में ईश्वर के साथ अल्लाह भी आते हैं। आज के ये 'सच्चे- सनातनी हिंदू' अल्लाह का नाम कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं? मंच के नीचे से विरोध में 'जयश्री राम' के नारे लगने लगे। नेताओं में इससे खलबली मच गई। एक नेता ने गायिका से फौरन माफी मांगने और गाना बंद करने को कहा। गायिका ने ऐसा ही किया। श्रोताओं से क्षमा मांगते हुए उन्होंने कहा कि इससे आपकी भावनाएँ आहत हुई हों तो मैं माफी मांगती हूं। अब नेता जी की बारी थी- जयश्री राम के नारे लगवाने की। और इस तरह यह कार्यक्रम सफल हो गया होगा।
तो भाइयो- बहनो, अब मत कहना कि आज गांधी होते, तो ऐसा होता और गांधी होते, तो वैसा होता। गांधी होते, तो ये नहीं होता और गांधी होते, तो वो नहीं होता। सब होता, जो आज हो रहा है और वो सब नहीं होता, जो होना चाहिए। जो भीड़ ईश्वर और अल्लाह का नाम साथ- साथ लेना सहन नहीं कर सकती, वह गांधी का इस समय जिंदा रहना क्या बर्दाश्त कर लेती?
गया गांधी का जमाना। 1947 में उनके जीते जी ही वह जाने लगा था। आज वह होते तो भी राम रथ यात्रा निकलती। बाबरी मस्जिद गिराई जाती। गुजरात में 2002 में जो नरसंहार हुआ, वह होकर रहता। लालकृष्ण आडवाणी तथा नरेन्द्र मोदी के आगे गांधी जी की एक न चलती। उन्हें बार-बार बेइज्जत किया जाता। उनका मजाक उड़ाया जाता। उनकी हर बात का मखौल उड़ाया जाता। उनके मुंह पर भद्दी -भद्दी गालियां दी जातीं, जिसके दर्शन आज फेसबुक और एक्स आदि पर होते रहते हैं।
गांधी जी को उनके सभी आश्रमों से बेदखल कर दिया जाता। कहा जाता कि ये रेलवे की या राज्य सरकार की जमीन पर अवैध ढंग से बने हैं। उन पर बुलडोजर चला दिए जाता। गांधी जी चुपचाप बाहर निकल आनेवालों में नहीं थे, वह वहीं सत्याग्रह करने बैठ जाते तो पुलिस के दो जवान उन्हें खींच कर बाहर ले जाकर पटक देते। वे अन्न-जल त्याग देते तो किसी को इसकी चिंता नहीं होती। अगर मर जाते तो दसवें पेज पर एक कॉलम में कहीं ख़बर छपती, कहीं नहीं भी छपती। प्रधानमंत्री और गृहमंत्री इसका नोटिस तक नहीं लेते। इसकी जांच करवाने की खोखली औपचारिकता भी पूरी नहीं की जाती। कांग्रेस और अन्य विपक्ष दलों के नेता उन्हें श्रद्धांजलि देते तो इसकी ख़बर नहीं छपती, प्रसारित नहीं होती। दो दिन बाद सारा मामला शांत हो जाता।
गांधी जी को अधनंगा नहीं रहने दिया जाता। उन पर यह इल्जाम लगाया जाता कि इस तरह वह दुनिया की नज़र में आज के भारत को बदनाम करने की साज़िश कर रहे हैं।
वह जिंदा रहते तो उन्हें घुट-घुट कर मरने की स्वतंत्रता अवश्य दी जाती, इसमें किसी तरह की कंजूसी नहीं की जाती। ओछापन नहीं दिखाया जाता। अपने कमरे में चुपचाप आंसू बहाने की आज़ादी उन्हें होती। वह कुछ लिखते या कहते तो उनके कमरे के मालिक पर मनी लॉन्ड्रिंग सहित न जाने कितने केस लाद दिए जाते, ताकि गांधी नामक इस समस्या से वह अपना पीछा जल्दी से जल्दी छुड़ाए। उन्हें किराए के इस कमरे से भगा दे। दर- दर की ठोकरें उन्हें खिलवाए। जो भी उन्हें शरण देने को राजी हो, उसे बर्बाद कर दिया जाता, चाहे वह कोई भी हो! ईडी के सामने वह छह दिन तक आठ-आठ घंटे जवाब देते- देते थक जाता या कमजोर दिल होता तो क्या पता मर जाता!
गांधी अगर 2014 के बाद भी जिंदा रहते तो नरेन्द्र मोदी को बहुत से लाभ भी होते। राजघाट पर उनकी समाधि बनवाने का खर्च बच जाता। इससे बुलेट ट्रेन बनाने का बजट और बढ़ाने में मदद मिलती। सालभर में दो बार राजघाट जाने की तकलीफ़ से वे बच जाते। उनके अत्यंत मूल्यवान समय की इतनी अधिक बचत हो जाती कि देश 2047 के बजाय 2025 में 'विकसित' बन जाता। डंका तो बज ही रहा था और जोर से बजने लगता। बहरों की कतार अस्पतालों के बाहर तक लग जाती! मौज हो जाती। विकास हो जाता!
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