हम धर्मनिरपेक्षों की समस्या यह है कि हमें देश की असली समस्याओं की पहचान नहीं है। देश की एक अत्यंत गंभीर समस्या 'लव जिहाद ' है, इसे हम आज तक समझ नहीं पाए। हम इस बात से जरा भी विचलित नहीं हुए कि शत्रुघ्न सिन्हा की बेटी सोनाक्षी ने जहीर इक़बाल से शादी कर ली है। हमने सोचा कि कर ली होगी। ये दो वयस्कों का फ़ैसला है, इस ख़बर पर नज़र पड़ गई तो उसे पढ़ा और आगे बढ़ गए। हमें इस तरह का ख्याल आया ही नहीं, आ ही नहीं सकता है कि अगर शत्रुघ्न सिन्हा ने अपनी बेटी को बचपन से रामायण और महाभारत सुनाई होती तो ऐसी नौबत नहीं आती और शत्रुघ्न सिन्हा की 'श्री लक्ष्मी' को कोई और यानी कोई मुसलमान नहीं उठा ले जाता! इस तरह की सोच रखने के लिए हमें भी कुमार विश्वास होना पड़ता और वह हम हो नहीं सकते थे। इतनी 'काबिलियत' हासिल करना कोई आसान काम है!
हमारे दिमाग में तो आज से पहले यह ख्याल तक नहीं आया कि क्या कुमार विश्वास इन सज्जन का असली नाम है? आया तब भी सोचा कि है तो भी ठीक है और नहीं है तो भी ठीक है! हमें इससे क्या लेना-देना! नाम कुछ और भी होता, तब भी करते तो यही, जो कर रहे हैं! हमें तो इनकी कविता में भी कभी दिलचस्पी नहीं रही। खाने- कमाने के लिए सब कुछ न कुछ करते हैं, ये भी कर रहे होंगे! और जब कविता करने के साथ ये कथा भी बांचने लगे तो लगा कि शायद कवि सम्मेलनों की कमाई से इनका घर नहीं चल पाता होगा तो बेचारे अतिरिक्त कमाई के लिए यह धंधा भी करने लगे होंगे! करें।
तो हमारी समस्या यह है कि हमें नहीं मालूम कि आज देश की असली समस्या 'लव जिहाद' हो चुकी है, हर मस्जिद के नीचे मंदिर होना बन चुकी है। धर्मांतरण मुख्य समस्या है। मुसलमानों के बच्चे कहां पढ़ते हैं, क्या पढ़ते हैं, क्या खाते हैं, क्या पीते हैं, क्या पहनते हैं, कौन-सा त्योहार कैसे मनाते हैं, झटका मीट खाते हैं या हलाल, ये समस्या है। जैसे बहुत से हिंदू शाकाहारी हैं और बहुत से मांसाहारी हैं, यह किसी की भी समस्या नहीं है।
हम तो इतने 'गये-बीते' हैं कि आज भी भयंकर बेरोजगारी और महंगाई को समस्या मानते हैं। दिनों-दिन बढ़ती लूट से फिक्रमंद रहते हैं। हम इतने 'उथले' हैं कि उत्पादन में निरंतर आती कमी को असली समस्या मानते हैं, देश की संपत्ति को चंद हाथों में लुटा देने को समस्या मानते हैं।
हम बेवकूफ हैं और माफ़ करें, बेवकूफ़ ही रहना चाहते हैं। हमें देश की समस्याओं की जड़ में मुगल शासक या गांधी और नेहरू नहीं दिखाई देते। किसी रेलवे स्टेशन का नाम मुगलसराय हो या किसी शहर का नाम इलाहाबाद हो, हमें इससे न कभी समस्या थी, न होगी कभी। जमाना चाहे जितना 'आगे' बढ़ जाए, कुमार विश्वास चाहे कितने ही लोकप्रिय हो जाएँ, अरबपति- खरबपति हो जाएं, कल भारत के प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति भी हो जाएं तो भी हमें उनसे न ईर्ष्या होगी, न डर लगेगा। हमने बेवकूफ बने रहना स्वीकार किया है। हमारा सीना बेशक छप्पन इंची नहीं है मगर जितना भी है, किसी के सीने के इंच नहीं नापता फिरता। हम बेवकूफ़ हैं और बेवकूफ़ ही रहना चाहते हैं। हमें मुस्लिम मोहल्ले से तिरंगा यात्रा नहीं निकालनी। हम चूँकि बेवकूफ हैं, हमें किसी मस्जिद के आगे न डीजे बजाना है, न भगवा फहराना है। हमें गर्व से कहो हिंदू नहीं कहना है, मोदी -मोदी नहीं कहना है, तो नहीं ही कहना है। अपनी बेवकूफी में हमें मस्त रहना है। मार दिये जाने के ख़तरे के बीच ज़िंदा रहने की कोशिश करना है। हमें न मोदी बनना है, न योगी और न कुमार विश्वास। इनकी सफलता, इनकी लोकप्रियता इन्हें मुबारक। इनकी नफ़रत इन्हें मुबारक। हमें इनसे कुछ नहीं सीखना है और अगर ऐसा होना, बेवकूफ होना है तो हमारा नारा है- गर्व से कहो- हम बेवकूफ हैं।
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