राकेश कायस्थ युवा व्यंग्यकार हैं। उनका व्यंग्य संग्रह 'कोस-कोस शब्दकोश' बहुत चर्चित रहा। वह 'प्रजातंत्र के पकौड़े' नाम से एक व्यंग्य उपन्यास भी लिख चुके हैं।
आखिर मोदी संसद में अपनी 11 साल की उपलब्धियों के बारे में कुछ कहते तो क्या कहते? क्या वक्त बीतने के साथ ही नरेंद्र मोदी नेहरू के सामने खुद को और ज्यादा निहत्था और असहाय नहीं पाएंगे?
1993 में दो विलक्षण बच्चों- सचिन तेंदुलकर और विनोद कांबली ने 664 रन की पार्टनरशिप करके पूरी दुनिया को चौंका दिया था। तेंदुलकर तो आगे ‘क्रिकेट के भगवान’ कहलाए, लेकिन कांबली किस वजह से गुम हो गए?
मजदूरी करने वाले मुफ्त का पांच किलो अनाज लेकर मौज में है। मध्यम वर्ग टैक्स चुपचाप निकालकर दे देता है। बड़े उद्योगपति करोड़ों लेकर फरार हो जाते हैं। तो लोग आख़िर मगन किस चीज को लेकर हैं?
एक ऐसा भारत जहां की 80 करोड़ आबादी मुफ्त का राशन खाकर या मुफ्त में मिला राशन बेचकर गर्व करती है। जॉम्बी द्वीप का भविष्य इसी 80 करोड़ आबादी के हाथ में है। यही आबादी अब ओपिनियन मेकर है।
क्रिकेटर यशस्वी जायसवाल को अब कौन नहीं जानता। यशस्वी ने अपने पहले ही टेस्ट में क्रिकेट इतिहास की किताब को बदल दिया। पत्रकार राकेश कायस्थ से जानिए ऐसी रोचक बातें जो अब तक कहीं नहीं पढ़ी होंगी।
देव आनंद ने स्वामी दादा से लेकर अव्वल नंबर, लूटमार और सौ करोड़ तक ना जाने कितनी फिल्में बनाईं, लेकिन तीन घंटे की इन फिल्मों में कैमरा ढाई घंटे तक उनपर ही क्यों रहता था?
हिंदी साहित्य के व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई की 10 अगस्त को पुण्यतिथि थी। जानिए, मध्य प्रदेश के होशंगाबाद ज़िले में जन्मे परसाई की कैसी शख्सियत थी और वह कैसे याद किए जाते रहे हैं...
पैगंबर साहब पर नूपुर शर्मा और नवीन जिंदल की आपत्तिजनक टिप्पणी के मामले में देश की किरकिरी क्यों हो रही है? क्यों छोटे-छोटे देश भी अब आँखें दिखा रहे हैं?
साल 2014 के बाद से ही नेहरू के नाम को सभी जगहों से मिटाने की कोशिश की जा रही है। इतिहास में इसे लेकर प्रतिक्रिया जरूर होगी लेकिन सवाल यह है कि मौजूदा निजाम को नेहरू से इतनी परेशानी क्यों है?
दो दिन पहले ही पद्म श्री अवार्ड से नवाजी गईं कंगना रनौत ने क्यों कहा, '...और उन्होंने एक क़ीमत चुकाई... बिल्कुल वो आज़ादी नहीं थी, वो भीख थी। और जो आज़ादी मिली है वो 2014 में मिली है।'
मवेशियों के अनियंत्रित झुंड की तरह यह भीड़ भाग रही है। आप एक कोने में खड़े होकर बड़े गर्व से कह रहे हैं-हाई हेट पॉलिटिक्स। आप रौंदे जा चुके हैं, लेकिन आपको अंदाज़ा नहीं है।
अन्ना आये, अनशन आया, 2014 में नयी सरकार आयी लेकिन लोकपाल नहीं आया। पाँच साल तक ठाट से चौकीदारी चलाने के बाद अचानक मोदीजी ने इस सबसे सम्मानजनक पद को `सहकारिता आंदोलन’ में क्यों बदल दिया?
इमरान खान के प्रधानमंत्री बनते ही भारत और पाकिस्तान में एक नई जंग भी छिड़ गई है। एक ऐसी जंग जो 1947 के बाद से अब तक नहीं हुई थी। ये जंग है, मौलिक विचारों की, ये जंग है, हंड्रेड परसेंट ऑरिजनल आइडियाज़ की। ये जंग है, पकौड़े और अंडों की!