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नेहरू के साये का पीछा छूटा नहीं, मनमोहन का साया भी पीछे पड़ा!

हरिशंकर परसाई लिख गये हैं,

“दो तरह के नशे सबसे खास हैं। उच्चता का नशा और हीनता का नशा। दोनों बारी-बारी चढ़ते हैं।“

बहुत से लोगों को लगता है कि वर्तमान प्रधानमंत्री मोदी पर उच्चता का नशा स्थायी रूप से चढ़ा हुआ है। ये नशा उन्हें विवश करता है कि वो दुनिया को बताये कि उनका जन्म जैविक तरीक़े से नहीं हुआ बल्कि उन्हें इस धरा पर ईश्वर द्वारा भेजा गया है।

परसाई की बात को थोड़ा अगर आगे बढ़ायें तो समझ में आता है कि हीनता और उच्चता की ग्रंथियाँ अलग-अलग नहीं होती हैं। सुपरियोरिटी कांप्लेक्स अथवा उच्चता की ग्रंथि कुछ और नहीं बल्कि इनफिरियोरिटी कांप्लेक्स का विस्तार मात्र है।

असल में मोदी ऐसी हीनता के शिकार हैं कि उन्हें पूरी दुनिया को ये बताना पड़ता है कि उनसे बड़ा कोई नहीं है। यही हीनता `35 साल तक भीख मांगकर खानेवाले’ मोदी को डिजिटिल कैमरे के आविष्कार से पहले उसका स्वामी बना देती है और `एंटायर पॉटिकल साइंस’ में एमए की डिग्री दिलवा देती है।

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हीनता की ग्रंथि उन्हें पूर्व प्रधानमंत्री नेहरू के नाम से प्रचलित  `जवाहर जैकेट’ को मोदी जैकेट के रूप में री ब्रांड करवाने को मजबूर करती है। यही ग्रंथि चरखा पकड़कर फोटो खिंचवाने और गांधी भंडार के कैलेंडर पर लगवाने को विवश करती है। 

यही ग्रंथि मोदी को नेहरू की तरह बच्चों के बीच जाने और `मोदी काका’ के पिट चुके वीडियो बनवाने को मजबूर करती है और ग्लोबल वॉर्मिंग जैसे सवाल पर ये कहकर अपनी भद पिटवाने को बाध्य करती है कि दुनिया का मौसम नहीं बदला है बल्कि हम बदल गये हैं। 

पिछले 11 साल में नेहरू के प्रेत ने नरेंद्र मोदी को एक दिन भी चैन से सोने नहीं दिया है। जितनी बुराइयाँ उन्होंने नेहरू की हैं, हाव-भाव और हुलिये तक उनकी कॉपी करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। नेहरू से चुराकर खुद को प्रथम सेवक कहा। जो कुछ कर सकते थे, सबकुछ किया लेकिन इस प्रेत बाधा से उन्हें मुक्ति नहीं मिली।

अब एक और नया प्रेत मोदी के सामने खड़ा हो गया है। ये प्रेत मनमोहन सिंह का है। नेहरू का प्रेत गोलवकलर के समय से संघियों का पीछा कर रहा है। मतलब, ये प्रेत बाधा मोदी ने विरासत में ग्रहण की थी। लेकिन मनमोहन सिंह का प्रेत उनके लिए ज्यादा जानलेवा होगा।

अफवाह तंत्र पर खड़े फासिस्ट संगठन आरएसएस ने पिछले छह दशक में लोकस्मृति से नेहरू को मिटाने के लिए रात-दिन प्रोपेगैंडा चलाया है। इसका असर ये है कि भारत की वाचिका परंपरा के एक हिस्से में नेहरू वाकई `विलेन’ समझे जाते हैं। भोले-भाले बीजेपी वोटरों के पास तथ्यों को जांचने की न तो बुद्धि है न कोई इच्छा। लेकिन मनमोहन का प्रेत नेहरू के मुकाबले बड़ा विकट है।

मनमोहन लोक स्मृतियों में जिंदा हैं। मोदी की हर हरकत इस स्मृति को लगातार मज़बूत कर रही है। डॉ. सिंह के निधन के बाद ये स्मृतियां अचानक भावनाओं के सैलाब बनकर फूटी हैं और देश की प्रतिक्रिया ऐसी है कि बीजेपी-आरएसएस के पांव तले जमीन खिसक रही है।

नई-पुरानी हर बात पर अब मनमोहन याद आएंगे। जब `बेटी बचाओ’ के चैंपियन मोदी अपनी लोकसभा क्षेत्र वाराणसी के दौरे पर लड़कियों को पुलिस के हाथों पिटता देख रहे थे, तब इस देश को निर्भया मामले में मनमोहन सिंह की संवेदनशीलता याद आ रही थी।

जिस दिन वाराणसी में मोदी का दौरा था, उस दौरान बीएचयू की लड़कियाँ इसलिए सड़क पर उतरी थीं ताकि उनके सांसद इस बात का नोटिस लें कि हॉस्टल में लड़के उनके साथ यौन हिंसा कर रहे हैं, खिड़की के सामने खड़े होकर गंदे इशारे कर रहे हैं, गंदी हरकतें कर रहे हैं। लड़कियां चाहती थीं कि मोदी उनके साथ न्याय करें लेकिन मोदी ने उन्हें बदले में लाठियां दीं।

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कोई याद कर ले कि निर्भया का हादसा होने के बाद मनमोहन सिंह ने क्या किया था। प्रधानमंत्री की पहल पर पीड़िता को तत्काल एयर एंबुलेंस से इलाज के लिए सिंगापुर भिजवाया गया था। जब निर्भया का शव दिल्ली आया था, तो खुद तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह यूपीए प्रमुख सोनिया गांधी के साथ खुद एयरपोर्ट पर मौजूद थे।

इसके बाद पाक्सो एक्ट आया। वर्किंग प्लेस पर वुमेन सेफ्टी के लिए विशाखा गाइड लाइंस आईं। हीनता की ग्रंथि से पीड़ित मोदी ने मणिपुर में सड़क पर निर्वस्त्र करके घसीटी जाती बेटियों के फोटो देखे लेकिन मुंह से एक शब्द नहीं निकला। हीनता की ग्रंथि ने मोदी को कुवैत में जाकर ये कहने को मजबूर तो किया कि 45 साल में किसी और प्रधानमंत्री को यहां आने का वक्त नहीं मिला। लेकिन सच है कि मोदी को मणिपुर जाने का वक्त नहीं मिला या फिर हिम्मत नहीं हुई।

जब नोटबंदी के बाद लोग एटीएम की लाइनों में खड़े दम तोड़ रहे थे, तब हर किसी को मनमोहन सिंह याद आ रहे थे कि किस तरह उनकी मनरेगा जैसी योजनाओं ने इस देश के करोड़ों लोगों को गरीबी रेखा से बाहर निकाला था। 

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जेलों में बंद हजारों बेगुनागह लोगों को देखकर याद आता है कि किस तरह मनमोहन सिंह ने काला झंडा दिखाने वाले छात्रों पर कोई कार्रवाई ना करने का निर्देश दिया था। मनमोहन सिंह से जुड़ी स्मृतियां इतनी ताकतवर हैं कि अब बात-बात में मोदी के सामने आकर खड़ी हो जाएंगी और उन्हें हीनता का एहसास दिलाएंगी।

नेहरू की प्रेत का पीछा करते हुए मोदी ने 11 साल गुजार दिये और नेहरू-नेहरू की उनकी बड़बड़ाट को समर्थक समूह ने इस तरह दोहराया कि भारत मास हीस्टिरिया से ग्रसित देश लगने लगा, एक जीता-जागता जॉम्बी लैंड। लेकिन नये प्रेत का मोदी क्या करेंगे?

मोर का पंख, लोबान का धुंआ, बंगाली बाबा का सोंटा और पिशाचमोचन का अनुष्ठान ये सब मिलकर भी मोदी को मनमोहन के प्रेत से मुक्त नहीं कर सकते। अब तो उन्हें शापित जीवन ही जीना पड़ेगा! 

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राकेश कायस्थ
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