भारत और पाकिस्तान के बीच सीज फायर की घोषणा अमेरिका ने की। हद हो गयी। जिस मसले को हम द्विपक्षीय मानते-कहते आ रहे हैं, उसमें मध्यस्थता अमेरिका ने घोषित तौर पर की। और यह भी कि अब दोनों देश सभी मुद्दों पर बात करें। बात तो हमने कई सालों से यही कहकर बंद कर रखी थी न कि आतंक की समाप्ति के बगैर बात नहीं होगी। तो पहलगाम के बाद ऑपरेशन सिंदूर, उसके बाद एक दूसरे पर जवाबी कार्रवाइयाँ ऐतिहासिक शिमला समझौते की बलि चढ़ाकर वार्ता पर आ गयीं। तो क्या इस पूरे घटनाक्रम ने भारत पाक वार्ता के द्वार खोल दिये हैं? और बात होगी तो क्या होगी? क्या हमने मिशन अधूरा नहीं छोड़ दिया? क्या बात पीओके को वापस नहीं लेने की थी? क्या सदन में केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने पीओके पर जान देने की बात नहीं कही थी? क्या हमारी संसद ने 1994 में पीओके पर एक स्वर से प्रस्ताव नहीं पारित किया था?
तो यह आधी अधूरी लड़ाई क्यों? क्या हमें मालूम नहीं था कि चीन उसके पीछे खुलकर खड़ा है। ऑपरेशन सिंदूर को पाक ने एक्ट ऑफ वार माना। और हम बुद्ध बनने लगे, नॉन एस्केलेटरी कहने लगे। आतंकी हमला उसने किया, युद्ध उसने शुरू किया, तो जवाब लिमिटेड क्यों। और फिर अचानक सीज फायर? हासिल क्या हुआ?
इसीलिए आज सभी 1971 की याद कर रहे हैं।
याद दिलाना जरूरी है कि जब भारत इतिहास लिखता है, तो वह स्याही से नहीं, सेना के लहू और जनता के विश्वास से चुने राजनेताओं के नेतृत्व से लिखता है।
22 अप्रैल, 2025 को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के जवाब में जब भारत का सैन्य अभियान ऑपरेशन सिंदूर 7 मई की रात शुरू हुआ, तो 100 से अधिक आतंकवादी ढेर भी हुए, पर हमें उसके बाद के कदमों के लिए भी तैयार रहना था। पाकिस्तान ने आक्रामकता की सारी हदें पार कर नियंत्रण रेखा से लेकर जम्मू-कश्मीर, पंजाब, राजस्थान और गुजरात के समूचे पश्चिमी मोर्चे पर स्थित सैन्य और नागरिक ठिकानों पर करीब 400 मिसाइलों और ड्रोनों से हमला किये। फिर हमने उनके करीब 10 एयरबेस तबाह किये, हमें भी कुछ नुकसान हुआ। यह मौका था कि हम कारगिल से आगे बढ़ते, 1971 की तरह जवाब देते। पर हम रुक गये। क्यों?