कमाल की चीज़ है, हिंदी सिनेमा। समाज का हर ट्रेंड, मानवीय व्यवहार की हर गुत्थी, आपकी आम जिंदगी से जुड़े हर संदर्भ आपको किसी ना किसी हिंदी फिल्म में मिल जाएंगे। आज एक खास तरह ट्रेंड की बात कर रहा हूँ। ये ट्रेंड है, अपने उत्कर्ष के दिनों में लोकप्रियता के चरम पर रहे कलाकारों के सठियाने के बाद का रचनात्मक व्यवहार। दो उदाहरण सबसे बड़े हैं, देव आनंद और मनोज कुमार।
हिंदी सिनेमा: नायकों की आत्ममुग्धता की अजीबोगरीब कहानी!
- सिनेमा
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- 31 Jun, 2023

देव आनंद ने स्वामी दादा से लेकर अव्वल नंबर, लूटमार और सौ करोड़ तक ना जाने कितनी फिल्में बनाईं, लेकिन तीन घंटे की इन फिल्मों में कैमरा ढाई घंटे तक उनपर ही क्यों रहता था?
निर्देशक देव आनंद ने अपनी करनी से हर उस बड़े काम को धोने की पुरजोर कोशिश की है, जो कलाकार देव आनंद के नाम पर दर्ज हैं। लेकिन लकीर इतनी बड़ी थी कि धुंधली नहीं हो पाई, इसलिए लोग कहते हैं कि अगर छोटे भाई विजय आनंद ना होते तो देव आनंद भी ना होते।
राकेश कायस्थ युवा व्यंग्यकार हैं। उनका व्यंग्य संग्रह 'कोस-कोस शब्दकोश' बहुत चर्चित रहा। वह 'प्रजातंत्र के पकौड़े' नाम से एक व्यंग्य उपन्यास भी लिख चुके हैं।