“नींद और भूख का अगर आपको डिप्राइवेशन है तो कहीं न कहीं वो ऐसा मार्क आप पर छोड़ कर जाएगा कि आप भूल नहीं सकते। मैं जाता हूँ फ़ाइव स्टार होटेल्स में सुइट्स हैं बड़े-बड़े डबल बेड हैं, उनपे मैं लेटता हूँ कभी, तो मैं याद करता हूँ जब मैं थर्ड क्लास कंपार्टमेंट में आया था बॉंबे, और कोई दो दिन की तक़रीबन जर्नी थी, तो देयर वाज नो प्लेस टु सिट, मतलब कंधा टिकाने की जगह नहीं थी and how I was deprived of sleep and how tired I was. उस दिन यार इतनी सी जगह मिल जाती! सुबह ट्रॉली पे नाश्ता लेके आता है, ब्रेकफ़ास्ट पूरा, बटर, जैम, हाफ प्राइड एक्स, कॉफ़ी - मैं सोचता हूँ तेरी औक़ात है? अभी भी ये लगता है कि ये ब्रेकफ़ास्ट मेरा नहीं है। ये किसी और का है। I can’t get over this.”

70-80 के दशक की बेस्ट जोड़ी माने जाने वाले सलीम-जावेद पर आई डॉक्यूमेंट्री 'एंग्री यंग मैन' में आख़िर क्या है। पढ़िए, इसकी समीक्षा। अमिताभ की क़लम से…
अपने बीते दिनों के संघर्ष को याद करते हुए उस दौर में नींद , भूख, महरूमी के एहसास की आज की पांच सितारा होटलों में गुज़रने वाली ऐशोआराम की जिंदगी से तुलना करते हुए जावेद अख़्तर की आँखें डबडबा जाती हैं, आवाज़ भर्रा जाती है। इस दृश्य और उसके कथ्य की मार्मिकता, जावेद अख़्तर की टीस दर्शक को भी भावुक कर देती है।
उधर, सलीम खान अपने बारे में कहते हैं- मैं खुद को जेम्स डीन (मशहूर हॉलीवुड स्टार) समझता था।
उनसे जब पूछा जाता है कि उनको हेलेन से प्यार कैसे हुआ तो मुस्कुरा कर कहते हैं-आपने अगर किया हो तो पता लग जाएगा। जिसने नहीं किया, उसको पता नहीं होगा !