आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने हर मस्जिद में मंदिर ढूंढने की प्रवृत्ति पर चिंता जताई तो बदले में उन्हें अपने आसपास से गुर्राहटें सुनाई देने लगीं। बहुत से संत-महंतों ने संघ प्रमुख से दो-टूक कह दिया कि वो पूरे हिंदू समाज का नेता बनने की कोशिश ना करें। हिंदू राजनीति में यह एक अलग तरह की हलचल है। इस डेवलपमेंट के क्या मायने हैं, आइये बिंदुवार समझने की कोशिश करते हैं-
1. सबसे पहली बात ये है कि अपने कर्म से इतर धर्म, नैतिकता, अहिंसा आदि पर बीच-बीच में प्रवचन देते रहना संघ के शीर्ष नेतृत्व का पुराना शगल है। अगर आप थोड़ी मेहनत करें तो एक ही सवाल पर मोहन भागवत के बयानों के कई परस्पर विरोधी वर्जन ढूंढ सकते हैं। ये बयान इसलिए दिये जाते हैं कि ताकि समय और राजनीतिक जरूरतों के मुताबिक ये दावा किया जा सके कि संघ ये चाहता है अथवा संघ ये नहीं चाहता है।
2. मोहन भागवत ने ताजा बयान में कहा है कि हम लंबे समय से सद्भाव से रहते आये हैं और दुनिया को सद्भाव देना चाहते हैं तो हमें इसका एक मॉडल तैयार करना चाहिए। सुनने में ये बात अच्छी लग सकती है लेकिन सिरे से हास्यास्पद है। शांति-पूर्ण सह-अस्तित्व का मॉडल भारत में हज़ारों साल पुराना है और कामयाबी से चलता आया है। फिर भागवत जी कौन सा नया मॉडल तय करेंगे और क्यों? वे अपने उत्पाती अनुषंगी संगठनों पर लगाम लगायें, बस इतना ही पर्याप्त होगा।
3. भागवत की अगली बात महत्वपूर्ण है। सरसंघचालक ने कहा है कि राम मंदिर के निर्माण के बाद कुछ लोग सोचते हैं कि नई जगहों पर ऐसे मुद्दे उठाकर हिंदू नेता बन जाएंगे तो यह स्वीकार्य नहीं है। असली खबर इसी एक लाइन में छिपी है। इस लाइन का सीधा मतलब है कि आरएसएस कह रहा है कि हिंदुत्व की राजनीति के इकलौते कॉपीराइट होल्डर केवल हम हैं।
4. सवाल ये है कि आरएसएस को चुनौती कौन दे रहा है? राहुल गाँधी लगातार कह रहे हैं कि हमारी लड़ाई आरएसएस की विचारधारा से है। लेकिन भागवत जी की समस्या गाँधी नहीं बल्कि मोदी हैं।
मोहन भागवत ब्राह्मणवादी सामाजिक-राजनीतिक व्यवस्था के शीर्ष पुरूष हैं लेकिन नरेंद्र मोदी अब उनसे एक कदम आगे निकल चुके हैं।
5. नरेंद्र मोदी अब अपने आप में स्वयं हिंदू राष्ट्र हैं। एक अवतारी पुरूष हैं। लोकसभा चुनाव के दौरान उन्होंने कृष्ण की तरह अपना विराट रूप दिखाया जिसका संदेश ये था कि अगर सरसंघचालक मोहन हैं तो मोदी स्वयं शंख-चक्र पद्मधारी नारायण हैं। सारे अवतार उन्हीं से निकलते हैं और उन्हीं में आकर विलीन होते हैं।
6. मोदी के नॉन बायोलॉजिकल होने के एलान के बाद बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी.नड्डा ने कह दिया कि पार्टी को अब आरएसएस की जरूरत नहीं है। कई सीटों से खबरें आईं कि संघ कोई मदद नहीं कर रहा है। चुनाव में मोदी लगभग हारते-हारते बचे और उसके बाद मोहन भागवत `खुद को भगवान बताने वालों’ पर हमलावर हो गये।
7. मोदी और भागवत का ये शीतयुद्ध आनेवाले दिनों में सिर्फ हिंदू राजनीति नहीं, बल्कि समाज की दिशा भी तय करेगा। ये लड़ाई ब्राह्मण वर्चस्व और अति आक्रमक ओबीसी हिंदुत्व के बीच है।
8. एक समय ब्राह्मण-बनिया पार्टी कही जानेवाली बीजेपी ने राम-मंदिर आंदोलन के समय बहुत बड़ी संख्या में पिछड़े समुदाय के लोगों को अपने साथ जोड़ा, नतीजे में देखते-देखते बीजेपी सत्ता के क़रीब पहुंच गई। लेकिन संघ के ब्राहण नेतृत्व ने बहुत होशियारी से सबकुछ अपने नियंत्रण में रखा।
9. नब्बे के दशक में आया बीजेपी का तीव्र विस्तार कुछ समय के लिए थम गया। लगातार दो लोकसभा चुनावों में पार्टी को हार मिली। सबको को ये समझ में आने लगा कि बिखरे हुए बहुजन वोट का बड़ा हिस्सा हथियाये बिना ना तो सत्ता में वापसी और ना कभी हिंदू राष्ट्र बनेगा। ठीक ऐसे मौके पर स्वघोषित ओबीसी नरेंद्र मोदी का उदय हुआ, जिनके खाते में गुजरात दंगों के दौरान अर्जित किया गया हिंदू हृदय सम्राट का टैग भी था।
10. नरेंद्र मोदी के उदय के बाद सबकुछ बदल गया। किंग मेकर आरएसएस अब खुद मोदी का मोहताज हो गया। पहले ये कहा जाता था कि ब्राह्मण नेतृत्व अपनी हिंदू राजनीति के लिए पिछड़ों का होशियारी से इस्तेमाल कर रहा है। अब सवाल उलट चुका है— क्या उग्र हिंदुत्व की कमान अब ओबीसी के हाथ रहेगी और ब्राह्मण नेतृत्व पीछे-पीछे चुपचाप चलने को विवश होगा?
11. मोदी युग के आरंभ के बाद जो इको सिस्टम बना है, उसमें पिछड़ी जातियों से जुड़े लोग कई जगहों पर बहुत ताक़तवर भूमिका में नज़र आते हैं। सरकारी जमीन कब्जाकर आश्रम और मंदिर बनाने वाले बाबाओं की जो नई खेप आई है, उनमें बहुत बड़ी तादाद नरसिंहरानंद यति सरीखे पिछड़ों की है। मौजूदा राजनीति को ऐसे लोगों की सख्त ज़रूरत है लेकिन क्या आरएसएस इस बदलाव को सहजता से पचा पा रहा है?
12. मुमकिन है, चित्तपावन संघ को उग्र होती हिंदू राजनीति की कमान अपने हाथ से छूटती दिखाई दे रही हो लेकिन उसके पास रास्ता क्या है? हिंसा और आक्रामकता को जिसने भी संरक्षण दिया है, आगे चलकर वो उसी का शिकार हुआ है।
13. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस इस धरती पर सबकुछ बदलने वाला है। दुनिया भर में करोड़ों नौकरियां जानेवाली हैं। दूसरी तरफ कई नये रास्ते भी खुलने वाले हैं। पड़ोसी देश चीन इस मामले में अमेरिका को पछाड़ने में जी-जान लगा रहा है और भारत मस्जिदों की खुदाई करवाकर मंदिर ढूंढ रहा है। बेशक, भागवत प्रवचन दे लें लेकिन उन्हें अपने आप से पूछना पड़ेगा कि आखिर ये पाप किसका बोया हुआ है?
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