गणतंत्र की स्थापना यानी संविधान लागू किये जाने की हीरक जयंती का जश्न शुरू हुआ। दुनिया की नज़रें भारत पर टिक गईं। दुनिया ने ये देखकर ताली बजाई कि सबसे बड़े लोकतंत्र और स्वयंभू विश्वगुरू ने संसद में अपना पूरा वक्त उस नेता को गालियां देने में खर्च कर दिया जिसने इस देश में संसदीय लोकतंत्र की नींव रखी थी।चालीस और पचास के दशक में एशिया से लेकर लैटिन अमेरिका और अफ्रीका तक जितने भी देश आज़ाद हुए, उनमें देखते-देखते लोकतंत्र का नामो-निशान मिट गया। सिर्फ भारत में प्रजातांत्रिक व्यवस्था बची रही। आखिर क्या फर्क था? सबसे बड़ा फर्क सत्ता के शीर्ष पर जवाहर लाल नेहरू जैसे किसी व्यक्ति के होने और ना होने का था।