वह हार्ड वर्किंग होने के साथ इंप्लायड भी थे। फिर भी गर्दभ समाज में उनका कोई अतिरिक्त सम्मान नहीं था। दरअसल, उन दिनों देश का हर गधा रोजगारशुदा हुआ करता था। जैसे सब बोझा ढोते थे, वैसे ही वह भी ढोते थे तो फिर काहे की इज्‍ज़त।वह दिन में मालिक के कई बार डंडे खाते और बदले में परिश्रम की पराकाष्ठा करने के संकल्प के साथ दोगुना बोझ उठाते थे। फिर भी मालिक उनसे ख़ुश नहीं था। 

फ़ूड सिक्योरिटी बिल या अंत्योदय जैसी कोई चीज़ गधों के लिए आई नहीं थी। ड्यूटी बजाने के बाद भोजन का इंतज़ाम भी उन्हें ख़ुद करना पड़ता था। लंच ब्रेक में उन्हें थोड़ी देर के लिए किसी ऐसे मैदान में चरने के लिए छोड़ दिया जाता था, जहाँ घास नहीं के बराबर होती थी।