बताए देता हूं मेरी नज़र इतनी तेज है कि मेरी ईडी ने उस कारोबारी को भी धर दबोचा, क्योंकि उसके बच्चों ने राहुल गांधी को भारत यात्रा के दौरान अपनी गुल्लक भेंट कर दी थी…। पढ़िए, विष्णु नागर का व्यंग्य।
2014 के बाद कैसा-कैसा 'विकास' हुआ है? पहले अयोध्या में राम पथ था? नहीं था। अब है और बनते ही पहली बरसात में उसमें बड़े -बड़े गड्ढे पड़ गए। राम पथ न बनता तो गड्ढे कहां पड़ते, गड्ढों को 'विकास' का अवसर इस सरकार ने भरपूर दिया है। 'विकास' हुआ या नहीं?
जहाँ हवा और पानी तक शुद्ध नहीं, दूध और घी में धड़ल्ले से मिलावट जारी है, दवा, डॉक्टर और पीएमओ के अधिकारी तक जिस सरकार में जाली नसीब हो जाते हैं, दिवाली में मिठाई तक शुद्ध नहीं मिलती, वहाँ भाषा तो शुद्ध ज़रूर होनी चाहिए!
उस शख्स ने कभी चौराहे पर जूते लगाए जाने की पेशकश की थी। लेकिन आज वो इतना गिर चुका है कि उसके बाद उसके गिरावट को मापने का कोई तरीका ही नहीं बचा है। वरिष्ठ पत्रकार-लेखक विष्णु नागर ने उसके गिरने की सीमा नापने की कोशिश की, लेकिन वो नाप नहीं पाए और अंत में उन्हें भी कहना पड़ा- कायर कहीं के। जरा आप भी गिरने की सीमा नापने की कोशिश करेंः
आपने विश्व की सबसे बड़ी प्रतिमा सरदार पटेल की बनाई, बहुत अच्छा किया। कहो तो इसके लिए ताली बजा दें? लेकिन ये क्या, शुभ काम में रोना-धोना क्यों शुरू कर दिया!
अभी माननीय कपड़ा मंत्री गिरिराज सिंह जी बिहार के चार मुस्लिम बहुल जिलों में हिंदू जागरण करने गए थे। पांच दिन वहां के हिंदुओं को गिरिराज जी ने अकेले दम पर जगाये रखा...। पर अब वह क्या कर रहे हैं?
एक साल पहले आंध्र के वर्तमान मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के ख़िलाफ़ ईडी के पास भ्रष्टाचार के एकदम ठोस सबूत थे। इतने अधिक ठोस थे कि वह जेल में महीनों रहे। अब उसी ईडी के पास उन्हीं नायडू के विरुद्ध ठोस क्या तरल या गैस रूप में भी सबूत नहीं हैं।
हराम के खाने की कोई बाकायदा दुकान नहीं होती, कोई साइन बोर्ड नहीं होता, कोई रेट कार्ड नहीं होता, दिखाने लायक कोई पदार्थ नहीं होता। जो भी होता है, निराकार होता है। पढ़िए, विष्णु नागर का व्यंग्य...।