राजनीति अब 24 में से 26 घंटे का, 365 में से 375 दिन चलनेवाला खेल है। कोई देखे-न देखे, दिन -रात चलनेवाली यह ऐसी रामलीला है, जिसकी कल्पना करना तुलसीदास जैसे महाकवि के वश में भी नहीं था। इसके पात्र कभी सोते नहीं, तो उन्हें जागने की तकलीफ़ भी उठाना नहीं पड़ती। दर्शक एक भी न हो तो भी ये ऐसे परमवीर हैं कि घबराते नहीं। हवा को, पानी को, पेड़ को, गिलहरी को भाषण और आश्वासन दे आते हैं। यह कहना यद्यपि रिस्की है मगर सच तो किसी न किसी को कहना ही पड़ेगा कि ये महाराणा प्रताप और वीर शिवाजी से अधिक 'वीर ' हैं। भले आज इनकी 'वीरता' को एनसीईआरटी की पाठ्य-पुस्तकों में जगह न दी जाए मगर वह दिन भी आएगा, जब पाठ्यक्रम में इनकी वीरगाथाएं पढ़ी और पढ़ाई जाएंगी। और अगर यह सच साबित हो जाए तो अत्यंत विनम्रता से आज ही अनुरोध कर देना चाहता हूं कि आधी पंक्ति में इसका श्रेय मुझे भी दे देना! और अगर सारा श्रेय मोदी जी को देने का प्लान बन चुका हो तो मुझे छोड़ देना। ये कोई नोबल पुरस्कार तो है नहीं, जो उनके साथ शेयर करने के बारे में सोचूं बल्कि मैंने तो यह भी तय कर लिया है कि अगर ऐसा संकट आ गया तो पुरस्कार ठुकरा दूंगा! वैसे नोबल पुरस्कार देनेवाले मोदी जी और मुझसे बेहद- बेहद अधिक समझदार हैं, ऐसा मान रहा हूं!