देखना तुम,अभी ये और गिरेगा। जब तुम सोचोगे कि अब गिरने के लिए और बचा ही क्या है, ठीक उसी समय यह तुम्हारी सारी उम्मीदों पर पानी फेरते हुए और भी नीचे गिर कर दिखा देगा। फिर व्यंग्य से तुम्हारी ओर देख कर मुस्कुराएगा।अतल में पहुंच जाएगा तो वहां से अतल के भी अतल में गिर कर दिखाएगा।तुम सोचोगे, इससे ज्यादा तो यह चाहकर भी नहीं गिर सकता। वह तुम्हें फिर से गलत साबित करेगा। इसके भी नीचे और भी नीचे और भी नीचे गिर कर दिखाएगा। पाताल के भी पाताल के भी पाताल के भी पाताल में गिर जाएगा और पूछेगा कि और भी नीचे गिर कर दिखाऊं क्या? आप बर्दाश्त नहीं कर पाओगे, वहां से उदास और हताश होकर चल दोगे।जी उल्टी करने को होने लगेगा तो वह अट्टहास करते हुए कहेगा- ' कायर कहीं के ' !
प्लीज, बता दो और कितना गिरोगे वत्स, किस चौराहे पर चलें?
- व्यंग्य
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- 29 Mar, 2025

उस शख्स ने कभी चौराहे पर जूते लगाए जाने की पेशकश की थी। लेकिन आज वो इतना गिर चुका है कि उसके बाद उसके गिरावट को मापने का कोई तरीका ही नहीं बचा है। वरिष्ठ पत्रकार-लेखक विष्णु नागर ने उसके गिरने की सीमा नापने की कोशिश की, लेकिन वो नाप नहीं पाए और अंत में उन्हें भी कहना पड़ा- कायर कहीं के। जरा आप भी गिरने की सीमा नापने की कोशिश करेंः