उस शख्स ने कभी चौराहे पर जूते लगाए जाने की पेशकश की थी। लेकिन आज वो इतना गिर चुका है कि उसके बाद उसके गिरावट को मापने का कोई तरीका ही नहीं बचा है। वरिष्ठ पत्रकार-लेखक विष्णु नागर ने उसके गिरने की सीमा नापने की कोशिश की, लेकिन वो नाप नहीं पाए और अंत में उन्हें भी कहना पड़ा- कायर कहीं के। जरा आप भी गिरने की सीमा नापने की कोशिश करेंः
हराम के खाने की कोई बाकायदा दुकान नहीं होती, कोई साइन बोर्ड नहीं होता, कोई रेट कार्ड नहीं होता, दिखाने लायक कोई पदार्थ नहीं होता। जो भी होता है, निराकार होता है। पढ़िए, विष्णु नागर का व्यंग्य...।
किसी देश का महाबली अपने मतदाताओं को संबोधित कर रहा है। वो अपने संबोधन में क्या-क्या कहता है, जानिए। देश के मौजूदा हालात पर देश के जाने-माने पत्रकार मुकेश कुमार का यह व्यंग्य बहुत सामयिक है। पढ़िए और पढ़ाइएः