मैं वह हूँ, जिसे आजकल भारत के साधारण से साधारण जन ईश्वर से पहले याद करते हैं क्योंकि जहां ईश्वर नहीं है, वहां मैं हूं। मैं आकाश में भी मैं हूं, पाताल में भी हूं। हवा और पानी में, मैं प्रदूषण की तरह मौजूद हूं। संसद में सत्तापक्ष के शोरशराबे के रूप में और सड़क पर गुंडागर्दी के रूप में उपस्थित हूं। मंदिरों में मैं, मंदिर कॉरीडोर हूं, आश्रमों में ढोंग- धतूरा हूं। जो संत-साधु का चेला ओढ़कर नफरत उगलते हैं, उनके वचनों में मैं ही विन्यस्त हूं। जो थूक जिहाद, लव जिहाद के नाम पर जहर उगलते हैं, उनके हृदयों में मेरा ही निवास है। मैं हर मस्जिद के नीचे पाया जानेवाला प्राचीन मंदिर हूं।