वे मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। उनमें मर्यादा पुरुषोत्तम वाले सभी गुण हैं यानी सर्व गुण संपन्न। उनके गुणों का वर्णन इस लेखक के लिए संभव नहीं है। अगर वह करेगा भी तो सूरज को दिया दिखाने जैसा होगा। निजी एवं सार्वजनिक जीवन दोनों में उन्होंने मर्यादा के उच्चतर मानदंड कायम किए हैं। इसीलिए उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है। जब कभी कोई तुलसीदास उनका चरित मानस लिखेगा तो समूचा विश्व आज से भी ज़्यादा भक्तिमय हो जाएगा।