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रिश्वत हमारा आंतरिक मामला है! 

अडानी जी ने सौर ऊर्जा की बिक्री का सौदा करने के लिए आंध्र आदि राज्यों के अधिकारियों को 2029 करोड़ रुपए की रिश्वत दी जा रही है या देना तय हुआ है, ऐसा अमेरिका कहता है। अब देखिए इसके खिलाफ केस कौन दर्ज करता है -अमेरिका और गिरफ्तारी का वारंट जारी कौन करती है अमेरिकी अदालत! अडानी, भारतीय। जिनको हजारों करोड़ की रिश्वत दी गई, वे भारतीय। देनेवाले भारतीय, लेनेवाले भारतीय! न देनेवाले को शिकायत है, न लेनेवाले को शिकवा है। न ईडी को दिक्कत है, न सेबी को, न सीबीआई को चिंता है! दाल- भात में मूलचंद की तरह सारी दिक्कत अमेरिका को है! ग़ज़ब है। ठीक है कि अमेरिकी निवेशकों की डॉलर की कमाई से यह रिश्वत दी गई है, तो क्या हुआ? डॉलर पर कहां यह छपा है कि इसकी कमाई से रिश्वत नहीं दी जा सकती? 

हमारे रुपयों की कमाई से आज कितने ही अडानी और अंबानी बने बैठे हैं। उन्होंने भी न जाने कितने मंत्रियों - अधिकारियों को रिश्वत दी होगी, यह बात भारत का बंदा- बंदा जानता है। न खाऊंगा, न खिलाऊंगा वाला तो सबसे ज्यादा जानता भी है, मानता भी है और खाता- खिलाता भी है! फिर भी हम भले मानुषों ने कभी इसकी शिकायत अपने पड़ोसियों तक से नहीं की! तू जान, तेरा ईमान जाने! उस पैसे से तू जुआ खेल या गाय के लिए भूसा खरीद, तेरी मर्ज़ी मगर अमेरिका को बड़ी फ़िक्र है कि जो हो, बड़ी ईमानदारी से हो, जैसे उनके यहां केवल ईमानदारी ही चलती है, बेईमानी तो चलती ही नहीं! तो फिर ये ट्रंप साहब क्या ईमानदारी के वैश्विक अवतार हैं जिन्हें अभी-अभी अमेरिकियों ने फिर से राष्ट्रपति पद से नवाजा है?

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अब मोदी जी के लिए एक और नई मुसीबत! कितनी ही मुश्किलों से बचाकर, कितने ही आरोपों को अनसुना करके, अरबों- खरबों  के ठेके दे और दिला कर, सरकारी बैंकों का पैसा उलीच- उलीच कर अडानी को समर्पित कर उसे खड़ा किया और उसके सहारे खुद भी खड़े हुए! और अब यह झंझट! रोज ही मोदी जी के सामने मुसीबतें खड़ी रहती हैं। कभी कनाडा की सरकार कहती है कि कनाडाई आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में सरकार का हाथ है, कभी अमेरिका के आतंकवादी गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या के प्रयास से हमारी सरकार को जोड़ा जाता है और अब यह संकट! अडानी पर संकट यानी मोदी जी पर संकट! मोदी जी पर संकट यानी राष्ट्र पर संकट, हिंदुत्व पर संकट! आदमी सोलह -सोलह घंटे काम करे, दस साल में एक भी छुट्टी न ले, फिर भी यह नतीजा? कितना दुख होता होगा न उन्हें! मन होता होगा, भाग जाएं, हिमालय पर जाकर तपस्या करें मगर फिर अडानी का खयाल आ जाता होगा यानी देश का ध्यान आ जाता होगा, तो बेचारे मन मसोस कर रह जाते होंगे। झोला इंतजार करता होगा और मोदी जी उसे उठाते उठाते नीचे पटक देते होंगे! अच्छे दिन लानेवाले के ये बहुत बुरे दिन हैं। ट्रंप जी जल्दी गद्दी पर बैठो और साहेब की इज्जत का कचरा होने से बचाओ!

समझ में नहीं आता हमारी सरकार डरती क्यों है, साफ कहे कि जो भी हुआ है, हमारे देश में हुआ है, हिंदू राष्ट्र में हुआ है, इसलिए यह हमारा आंतरिक मामला है और माननीय प्रधानमंत्री जी का यह घरेलू मामला है। हम इसमें किसी और देश को हस्तक्षेप करने की इजाजत नहीं दे सकते, भले ही वह दुनिया की बड़ी से बड़ी ताकत अमेरिका क्यों न हो! पहले ईडी और सेबी इस मामले में विस्तार से जांच करेगी। जिस तरह सेबी, अडानी मामले की जांच कर रही है, उसी तरह ईडी भी करती रहेगी! जल्दी क्या है? जल्दी का काम शैतान का! जब तक संबद्ध व्यक्ति का दोष भारत में सिद्ध नहीं हो जाता, हम अडानी को अमेरिका को सौंप कर भारत के विकास यात्रा को रोकने का खतरा नहीं उठा सकते! हमें 2047 में विकसित भारत बनाना है।

इधर यह भी चर्चा है कि मोदी जी ,ट्रंप जी के राष्ट्रपति बनने के बाद सबसे पहले उन्हें भारत बुलाना चाहते हैं। वे अगर इस मिशन में सफल हो जाते हैं तो मोदी- ट्रंप- अडानी की त्रिपक्षीय शीर्ष वार्ता में यह मसला आसानी से सुलझाया जा सकता है। ट्रंप जी राष्ट्रपति के रूप में अपने विशेषाधिकार का उपयोग करके इन आरोपों को रफा-दफा कर सकते हैं। मोदी जी जब सरकारी संपत्ति कारपोरेट को सौंप सकते हैं तो इसके बदले वे अमेरिका को भी बहुत कुछ सौंप सकते हैं!

अमेरिका को यह भी समझना चाहिए कि हमारे देश में भ्रष्टाचार और जालसाजी हवा और पानी की तरह ज़रूरी है। इसके बगैर देश चल नहीं सकता।
सारे देश की सारी भाषाओं के सारे अख़बार अगर रोज छाने जाएं तो भ्रष्टाचार के कम से कम पांच सौ और फ्रॉड के कम से कम दो हजार मामलों की खबरें छपी हुई मिलेंगी। जिसे साइबर फ्राड कहते हैं वो तो रोज अनगिनत होते हैं और जैसे मोबाइल चोरी की खबर नहीं बनती, उसी तरह साइबर फ्राड की खबर भी अब रूटीन मानी जाने लगी हैं! और रिश्वत की जहां तक बात है अगर मोदी जी के होते हुए, अडानी जी को रिश्वत देनी पड़ रही है तो बाकी जनता का क्या हाल होता होगा, यह क्या अमेरिका को समझ में नहीं आता? यहां तो रिश्वतखोरी पकड़नेवाले भी रिश्वत लेते हैं। यहां तो मिस्ड कॉल करनेवाले को मेम्बरशिप देनेवाली पार्टी भी पता नहीं कैसे दिल्ली और दिल्ली से बाहर बड़े- बड़े पार्टी आफिस खड़े कर लेती है! यह सब जादू की छड़ी से तो हो नहीं जाता होगा? और अकारण तो हमारे गृहमंत्री के सुपुत्र भारतीय क्रिकेट क्लब के अध्यक्ष नहीं बने होंगे तो हमारे देश में, हमारी संस्कृति में रिश्वत लेने- देने का कोई बुरा नहीं मानता! ऐसे लड़कों को लड़कियों के बाप मुश्किल से अपनी बेटी देते हैं, जिनकी ऊपरी कमाई नहीं होती! अतः अमेरिका को समझना चाहिए कि भारत और भारत सरकार के लिए भ्रष्टाचार, चोरी, जालसाजी तब तक कोई मुद्दा नहीं है, जब तक कि मामला विपक्षी दलों का हो!
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और जहां तक शेयर बाजार में अडानी के शेयर में आई मंदी का सवाल है, जब तक मोदी जी नीचे हैं और भगवान जी ऊपर हैं, तब तक न अडानी जी का कुछ बिगड़ेगा, न मोदी जी का और इनका कुछ नहीं बिगड़ा तो शेयरधारियों का भी क्या बिगड़नेवाला है? बल्कि इसे सही मौका समझकर अनेक समझदार अडानी के शेयर खरीद रहे होंगे। फिर भी अडानी के शेयर डूबते चले जाएं तो मोदी जी पर हमारे जो 15 -15 लाख रुपए बकाया हैं, वे ले लें और मौज करें!

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विष्णु नागर
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