देश का साधन-संपन्न मीडिया जो हमें दिखाता है और देश का सोशल मीडिया जो हमें समझाता है, इसके पीछे किसको सही समझें, किस के दावे या प्रस्तावना पर भरोसा करें।
चुनाव से पहले फ्रीबी के वादे अब मुद्दा बन रहा है? लेकिन सवाल है कि किसे चुनावी रेवड़ियाँ कहा जाएगा और किसे कल्याणकारी योजना? सुप्रीम कोर्ट यह कैसे तय कर पाएगा?
नेहरू बीजेपी के निशाने पर रहे हैं और नेहरू जन्मदिन पर सोशल मीडिया पर नेहरू पर हमले होते रहे हैं। इसमें उनके बारे में फैलाए गए मिथकों का इस्तेमाल हो रहा है। सच क्या है?
हरू के बारे में इन दिनों सोशल मीडिया में तरह तरह के दुष्प्रचार चलाए जा रहे हैं। उनकी छवि को बिगाड़ने की कोशिश की जा रही है। लेकिन नेहरू का जीवन पारदर्शी था।
बनारस के सिविल जज आशुतोष तिवारी द्वारा विजय शंकर रस्तोगी की याचिका पर काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मसजिद के संदर्भ में ASI सर्वे का आदेश न्यायपालकीय अल्जाइमर का ताज़ा उदाहरण है।
देश ने स्वतंत्रता के बाद सैद्धांतिक रूप से आत्मनिर्भरता, समृद्धि के जो भी बदलाव देखे हैं वह डॉ. भीमराव आम्बेडकर के संविधान को मूलरूप से अपनाने के बाद अनुभव किए हैं।
लोकतांत्रिक होने के लिए उसमें हर एक वर्ग, जाति, समुदाय की मौजूदगी ज़रूरी है। लोकतांत्रिक होने की इस कसौटी पर भारतीय मीडिया खरा नहीं उतरता है क्योंकि इसमें वह विविधता नहीं है।
ज़मीनी संघर्ष करते हुए उन्होंने बहुत कम समय में ही बहुजन समाज की न केवल एक राष्ट्रीय पार्टी खड़ी कर दी बल्कि देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में अपनी पार्टी की सरकार भी बना डाली।
मीडिया में अभद्र भाषा का इस्तेमाल तो धड़ल्ले से हो रहा है। इसमें भी रिपब्लिक टीवी पर बहस को लेकर सवाल उठते रहे हैं। अर्णब गोस्वामी की भाषा क्या सीमाओं को लांघती है?