कोरोना महामारी और इससे एक लाख से ज़्यादा मौत के कारण पहले से ही जूझ रहे अमेरिका के सामने एक नयी मुश्किल आन पड़ी है। अब वहाँ नस्लीय भेदभाव से मौत के बाद विद्रोह की वजह से संकट और गहरा गया है।
बेहतर ज़िंदगी की तलाश में टेक्सास से मिनिपोलिस आये एक अश्वेत अमेरिकी नागरिक जॉर्ज फ्लॉयड को नकली डॉलर चलाने के आरोप में पकड़ा गया था। एक राह चलते व्यक्ति द्वारा बनाए गए नौ मिनट के वीडियो में दिख रहा है कि मिनिपोलिस के एक पुलिसकर्मी डरेक चाउवीन ने जॉर्ज फ्लॉयड की गर्दन को अपने घुटनों से दबाया हुआ है और जॉर्ज फ्लॉयड पुलिस कर्मियों से कह रहे हैं कि उन्हें साँस लेने में कठिनाई हो रही है। इस दौरान अचेत हुए फ्लॉयड की बाद में मौत की पुष्टि हो जाती है। पुलिस हिरासत में हुई इस मौत का विरोध पूरे अमेरिका में फैल गया है और अब इस विरोध ने हिंसक रूप ले लिया है।
यह विरोध सिर्फ़ एक दिन हुई घटना की वज़ह से नहीं हो रहा है, बल्कि इसकी चिंगारी अमेरिका में काफ़ी सालों से भड़क रही है।
4 जुलाई 1776 में अमेरिका को स्वतंत्रता मिल गयी थी। पर अफ़्रीका से लाये गये अश्वेत ग़ुलामों को दासता से मुक्ति नहीं मिली थी। उनसे घर के सारे कार्य कराए जाते थे और उनका शारीरिक शोषण आम बात थी। आज़ादी के बाद उनको अधिकार देने की बात शुरू हो गयी थी पर उत्तर और दक्षिणी राज्यों में इस बात को लेकर मतभेद था। दक्षिणी राज्यों की बढ़ती नाराज़गी को कम करने के लिये वर्ष 1850 में भगोड़ा दास क़ानून लाया गया जिसमें मालिक से भाग चुके अश्वेतों को पकड़कर वापस लाया जा सकता था। उत्तर और दक्षिण राज्यों के बीच मतभेदों की वजह से 1861-1865 के बीच गृह युद्ध चला। अब्राहम लिंकन ने इन सभी आपसी मतभेदों को ख़त्म कर मुक्ति उद्घोषणा की और गृह युद्ध समाप्त कराया।
उसके सौ साल बाद भी अमेरिकी समाज में अश्वेतों की स्थिति में कुछ खास सुधार नहीं आया और न ही उन्हें श्वेतों के समान अधिकार प्राप्त हुए। इसी के परिणामस्वरूप वर्ष 1955-68 तक मार्टिन लूथर किंग की अगुवाई में अमेरिका में अफ़्रीकी अमेरिकी नागरिक अधिकार आंदोलन चला। इसी आंदोलन के बीच 1963 में अपने दिये गये एक भाषण में मार्टिन लूथर किंग ने कहा था कि आज मुक्ति उद्घोषणा के सौ साल बाद भी अश्वेत अमेरिकी अपने देश में ही ख़ुद को निर्वासित पाता है और समाज के कोनों में सड़ रहा है। उन्होंने कहा था-
“
‘मेरा एक स्वप्न है कि भविष्य का अमेरिका ऐसा हो जहाँ मेरे बच्चे अपने रंग से नहीं अपने काम और चरित्र से पहचाने जाएँ।’
मार्टिन लूथर किंग
इसके बाद भी स्थिति नहीं सुधरी और नस्लीय भेदभाव होते रहे-
- वर्ष 1991 में शिकागो दंगे और 1992 में लॉस एंजेलिस दंगों ने अमेरिका पर दाग लगाया।
- साल 2014 जुलाई में ठीक इसी तरह का वीडियो सामने आया था जब न्यूयॉर्क में एक अश्वेत एरिक गार्नर को पुलिस द्वारा इसी तरह मारा गया था।
- वर्ष 2014 में ही अमेरिका के क्लेवलेंड, ओहियो में एक बारह वर्षीय बच्चे तामिर राइस को पिस्तौल लेकर घूमने की सूचना पर पुलिस कर्मियों ने गोली मार दी जिससे उसकी मौत हो गयी थी। जाँच में पाया गया कि बच्चे के पास वह पिस्तौल नकली थी।
- इसी साल 23 फ़रवरी में अहमद अरबरी नामक अश्वेत अमेरिकी को जॉगिंग करते हुए उसके घर के पास ही लुटेरा समझ कर श्वेत पिता-पुत्र ने मिलकर गोली मार दी थी।
पुलिस की हिंसा के शिकार अश्वेत ज़्यादा
अमेरिकी अख़बार 'द गार्जियन' द्वारा कराए गये एक सर्वे के अनुसार अमेरिका में पुलिस द्वारा प्रति दस लाख लोगों में मारे गये 7.13 लोग अश्वेत होते हैं वहीं मारे गये श्वेतों की संख्या 2.91 है। अमेरिका में पुलिस द्वारा एक साल में क़रीब एक हज़ार लोग मारे जाते हैं। बराक ओबामा जब अमेरिका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने थे तब यह लगा था कि अब नस्लीय भेदभाव वाला अमेरिका पीछे छूट गया है पर ट्रम्प के अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के बाद स्थिति और बदतर हो गयी। ट्रम्प का नस्लीय भेदभाव से पुराना नाता रहा है।
1973 में ट्रम्प पर आरोप लगे थे कि उन्होंने रंग के आधार पर अपने फ़्लैट किराए पर दिए थे। अश्वेतों को अपने फ़्लैट किराए पर देने से उन्होंने साफ़ मना कर दिया था। 1980 में किप ब्राउन जो ट्रम्प बिल्डिंग के पुराने कर्मचारी थे उन्होंने ट्रम्प पर यह आरोप लगाया था कि जब ट्रम्प कैसिनो में आते थे तो अश्वेतों को वहाँ से हटने के लिए कहा जाता था।
वर्ष 1989 में बलात्कार के आरोप में सज़ा होने के बाद मुक्त हो चुके पाँच अश्वेत नागरिकों पर ट्रम्प ने 2016 में बयान दिया था कि वह अब भी मानते हैं कि वो पाँचों दोषी थे। 2015 में मेक्सिकन अप्रवासियों को ट्रम्प ने अपराधी, बलात्कारी और नशे का कारोबार करने वाला कहा था। 2016 में उन्होंने अश्वेतों को ग़रीबी में जीने वाला कहा था। ट्रम्प हमेशा से ओबामा के विरोधी भी रहे हैं।
अब देखना यह होगा कि जॉर्ज फ्लॉयड की मौत के बाद हो रहे ये प्रदर्शन भविष्य के अमेरिका में कुछ बदलाव ला पाएँगे या नहीं। कोरोना की वजह से पहले ही आर्थिक रूप से टूट चुके अमेरिका को अपनी विश्व महाशक्ति की छवि बरकरार रखने के लिये गोरे-काले के इस तिलिस्म को तोड़कर हर नागरिक को एक ही नज़र से देखना शुरू करना होगा।
मार्टिन लूथर किंग ने श्वेत-अश्वेत की धारणा मुक्त वाला जिस अमेरिका का सपना देखा था वह तभी संभव हो पायेगा।
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