एक पितृसत्तात्मक समाज में स्त्री को अपने अनुरूप ढालने और ढहाने के कुछ कारगर उपक्रम होते हैं। इसके बाद भी अगर वह बची रह जाए तब उसे अपमानित कर कमज़ोर कैसे किया जाए इसकी कोशिश की जाती है। हाल की कुछ घटनाओं और दो बिल्कुल भिन्न चरित्र, रिया चक्रवर्ती और कंगना रनौत के मामलों में यह साफ़ देखा जा सकता है कि पितृसत्तात्मक समाज में शोषण और प्रताड़ना के लिए स्त्री कितनी सहज लक्ष्य है। एक स्त्री आर्थिक रूप से स्वतंत्र, कितने ही प्रतिष्ठित पद पर क्यों न हो, वह लैंगिक विषमता से कम प्रभावित भले हो लेकिन पूरी तरह बची रह सके, ऐसा नहीं है।