राजनीति का स्तर जिस तेज़ी से स्खलित होते जा रहा है, वैसे में अब उससे किसी भी तरह की सांस्कृतिक संस्कारी आचार संहिता का पालन करने की उम्मीद नहीं की जा सकती है। राजनीति दिशाहीन, सिद्धांत-विहीन हो गई है। पद और सत्ता का लालच राजनीतिक पार्टियों का अंतिम लक्ष्य हो गया है। आज जिस तरह से राजनीतिक पार्टियाँ राष्ट्रीय स्तर पर चुनाव की सांध्य बेला पर सांसदों की अफरा-तफरी और विधायकों की खरीद-फरोख्त मैं मशगूल हो रही हैं, जातिवाद, अवसरवाद, पद लोलुपता सिर चढ़कर बोलने लगी है, वैसे में निश्चित तौर पर लोकतंत्र शर्मिंदा होकर खंडित होने लगा है।
भविष्य के लिए थोड़ा बहुत लोकतंत्र तो बचा रहने दीजिए?
- पाठकों के विचार
- |
- |
- 24 Aug, 2022

भारत में बार-बार यह क्यों कहा जा रहा है कि लोकतंत्र पर हमला हो रहा है और यह ख़तरे में है? क्या सच में ऐसा है? आख़िर क्या चुनौतियाँ हैं?
संविधान की निर्मात्री सभा के सपने चूर चूर हो रहे हैं। यह भारतीय लोकतंत्र के लिए अच्छे दूरगामी परिणामों के संकेत नहीं है। पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम जी ने कहा था कि लोकतंत्र या प्रजातंत्र शब्द ग्रीक भाषा से अवतरित अंग्रेजी शब्द डेमोक्रेसी का हिंदी रूपांतरण है, जिसका सीधा सीधा अर्थ होता है प्रजा अथवा जनता द्वारा परिचालित शासन व्यवस्था। किंतु अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन की परिभाषा सर्वमान्य रूप से प्रचलित है जिसके अनुसार “प्रजातंत्र या लोकतंत्र जनता का, जनता के लिए, जनता द्वारा, शासन है।” उन्होंने इस कथन के तर्क में कहा, “क्योंकि मैं गुलाम नहीं होना चाहता, इसीलिए मुझे शासक भी नहीं होना चाहिए, यही विचार मुझे लोकतंत्र की ओर अग्रेषित करता है।”