चुनाव हरियाणा और जम्मू कश्मीर में हुए हैं। इन पंक्तियों के लेखक की, परोक्ष रूप से कार्यस्थली इन दोनों प्रांतों में नहीं हैं, लेकिन ये दोनों प्रान्त उस देश का अभिन्न अंग हैं, जो मेरे जैसे करोड़ों साधारण लोगों की साँसों में रचा बसा है। जो हमारी पहचान है, हमारा मान है और जिसके राजनीतिक और आर्थिक तापमान के साथ इस देश के आम और लगभग असहाय हो चुके एक ऐसे तबके की धड़कनों की रफ़्तार तय होती है, जिसकी अपने समूचे व्यक्तित्व से भारतीय होने या देश का एक अधिकृत नागरिक होने के बावजूद लगता है अब कोई औकात बची नहीं है।
मीडिया भी अब क्यों इतना बेबस दिखने लगा है?
- पाठकों के विचार
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- 10 Oct, 2024

देश का साधन-संपन्न मीडिया जो हमें दिखाता है और देश का सोशल मीडिया जो हमें समझाता है, इसके पीछे किसको सही समझें, किस के दावे या प्रस्तावना पर भरोसा करें।
बतौर दुष्यंत कुमार - ये वो ‘हम’ हैं… जो आज से लगभग पचास बरस पहले - उनकी एक रचना में - “ जिस तरह चाहे बजाओ इस सभा में, हम नहीं हैं आदमी हम झुनझुने हैं “ … के रूप में चिन्हित हुए थे और आज आधी सदी के बाद भी उसी तरह पिट रहे हैं…।