सोवियत संघ के पतन के बाद पेंटागन के एक उच्चाधिकारी ने कहा था कि अब हमारे स्तर का कोई शत्रु दुनिया में नहीं रहा। लगता है, उस अधिकारी की यह अहंकार भरी बात किसी मुस्कुराते शैतान ने सुन ली थी जिसने आज अमेरिका के सामने चीन के रूप में एक दुर्धर्ष शत्रु को खड़ा कर दिया है।
भेड़ियों के झुंड की तरह अमेरिका-यूरोप चीन को मार देंगे!
- पाठकों के विचार
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- 15 Jun, 2020

चीन दुनिया के सबसे शक्तिशाली देशों में उभरा है। उसकी आर्थिक नीतियाँ आक्रामक हैं। वह पूरी दुनिया भर में अपना जाल बिछा रहा है।लेकिन अमेरिका और यूरोपीय देश उसके पीछे पड़ चुके हैं।
चीन को इतना शक्तिशाली बनाने के पीछे भी अमेरिका ही है। जुलाई 1971 में अमेरिका के नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर हेनरी किसिंजर ने चीन से कूटनीतिक स्तर के संबंध स्थापित करने के लिए चोरी-छुपे चीन की यात्रा की थी जिसके फलस्वरूप फ़रवरी 1972 में अमेरिका के राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने चीन की यात्रा की थी। उस समय चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के चेयरमैन माओ त्से तुंग थे। यह किसी अमेरिकी राष्ट्रपति की पहली चीन यात्रा थी। सप्ताह भर चली उस यात्रा ने दुनिया के सभी देशों को चकित कर दिया क्योंकि कुछ साल पहले वियतनाम ने चीन की सहायता से अमेरिका को हराया था जिसमें 50,000 अमेरिकी सैनिक मारे गए थे।
कुछ भी हो इस यात्रा के बाद चीन के भाग्य खुल गए थे। माओ ने निक्सन से कहा था कि हमारे पास सस्ते मज़दूर हैं और आपके पास टेक्नोलॉजी, दोनों इसका लाभ उठा सकते हैं। इन दो धुर विरोधी विचारधाराओं के नेताओं के बीच इस मीटिंग को कराने के पीछे पाकिस्तान का हाथ था।