जानिए उस ऐतिहासिक राजनीतिक संकट के बारे में जब यूपी में एक समय दो मुख्यमंत्री बन गए थे और तत्कालीन राज्यपाल रोमेश भंडारी की क्या भूमिका थी। पढ़ें पूरी कहानी।
बुधवार 25 दिसंबर को महामना मदन मोहन मालवीय ,अटल विहारी वाजपेयी के साथ ही जीसस (ईसा मसीह) और जिन्ना का भी जन्मदिन है। वरिष्ठ पत्रकार हेमंत शर्मा ने सबकी स्मृतियों को प्रणाम करते हुए अटल के जीवन से जुड़ी बातों पर रोशनी डाली है। पढ़ियेः
तुलसी अपने समय के देश को देखते, समझते हैं। उसमें उसकी विषमताएं, अच्छाइयां, बुराइयां, सुख-दुख सब शामिल है, रामराज्य उस युग की आशा, आकांक्षा का प्रतीक स्वप्न है।
देश के जाने-माने हिन्दी पत्रकार हेमंत शर्मा होली के मूड में हैं। लेकिन होलियाना मूड में उन्होंने जो लिखा है वो सांस्कृतिक रूप से दरिद्र हो रहे समाज को चेताननी है। होली सिर्फ रंगों का त्यौहार नहीं है। इसे आपको समझना होगा। पढ़िए उनका यह शानदार आलेखः
प्रसिद्ध गांधीवादी विचारक और जनसत्ता के संपादक रहे प्रभाष जोशी जी का शुक्रवार 15 जुलाई को जन्मदिन है। उनके साथ काम कर चुके, उनके नजदीक रह चुके लोग उन्हें अलग-अलग तरह से याद करते हैं। वरिष्ठ पत्रकार हेमंत शर्मा भी प्रभाष जोशी जी के निकटवर्ती लोगों में थे। पढ़िए वो क्या कहते हैं प्रभाष जी के बारे में।
यह क्या हो रहा है? क्यों हो रहा है? चारो तरफ़ मौत का मंजर क्यों है? लग रहा है प्रलय की आहट तेज़ हो रही है।असमय जाते प्रियजन। अशुभ सिलसिला टूट ही नहीं रहा है। चौतरफा अवसाद। हताशा। इसके पीछे कौन है?
बनारसी गायकी का एक नक्षत्र टूटा गया। राजन जी उसी अनन्त में चले गए जहॉँ से संगीत के सात सुर निकले थे। जोड़ी टूट गयी। अब साजन जी का स्वर अधूरा रह जायगा। राजन साजन मिश्र की इस जोड़ी ने बनारस के कबीर चौरा से निकल कर दुनिया में ख़्याल गायकी का परचम लहराया।
कोरोना संकट के बीच जनता आज त्राहिमाम कर रही है। कोई सुनने वाला नहीं है। राम, तुम जिस करोड़ों लोगों की आस्था से भगवान हो, वे लोग मानवता के सबसे बड़े संकट से जूझ रहे हैं। भेड़-बकरियों की तरह सड़कों पर मर रहे हैं। क्या तुम्हें उनकी कोई सुध नहीं है?
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की ग़ैरमौजूदगी में भी उनकी नज़्म पाकिस्तान हुकूमत की चूलें हिला रही थी। ऐसी नज़्म को कुछ लोग अगर हिंदू विरोधी समझ रहे हैं तो उनकी बुद्धि पर तरस खाना चाहिए।
नामवर सिंह परलोक लीन हो गए। ऐसा लग रहा है कि मानो मेरे भीतर कुछ टूट गया हो। कुछ अपूरणीय-सा। असहनीय-सा। यह हिन्दी आलोचना की तीसरी परम्परा का चले जाना है।