प्रभाष जी आज होते तो चौरासी बरस के होते। देश की मौजूदा समस्याओं पर उनकी दृष्टि होती। ताकतवर राय होती। वे क्या लिखते यह लिखना मुश्किल है। क्यों कि संतों पर लिखना थोड़ा जोखिम भरा काम है, वजह संत के बारे में आप जितना जानते हैं, उससे कहीं ज्यादा उनके बारे में जानना बाकी रह जाता है। यह अशेष, एक किस्म का रहस्य पैदा करता है। उनका आभामंडल इतना विस्तृत होता है, जिसमें सारा संसार छोटा पड़ जाए। हम दुनियावी लोग उनके सामने सिर्फ श्रद्धा से सिर झुका सकते हैं।