बीजेपी और अन्नाद्रमुक ने तमिलनाडु में तीसरी बार चुनावी गठबंधन का ऐलान कर दिया है। इससे पहले दोनों दल दो बार गठबंधन तोड़ चुके हैं और एक-दूसरे पर जमकर कीचड़ उछाल चुके हैं। गृहमंत्री अमित शाह ने अन्नाद्रमुक के साथ कथित 'स्थायी' गठबंधन की घोषणा करते हुए स्वीकार किया कि बीजेपी ने तमिलनाडु में सनातन के सिद्धांतों को किनारे रखकर सत्ता की खातिर समझौता किया है। यह घोषणा दोनों दलों के अपने पुराने कटु बयानों को भूलकर तीसरी बार एक-दूसरे के साथ आने का प्रतीक है। इससे साफ़ है कि सत्ता की लालसा में बीजेपी और आरएसएस क्षेत्रीय दलों के सामने झुकने से नहीं हिचकते।

दिलचस्प बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस गठबंधन को तमिलनाडु की जनता के लिए नई उम्मीद और द्रमुक के कथित भ्रष्टाचार से मुक्ति का अवसर बताया है। द्रमुक और मुख्यमंत्री एमके स्टालिन को चुनौती देने के जोश में मोदी ने 1998 के अन्नाद्रमुक-बीजेपी गठबंधन को याद किया, जिससे उन्होंने अनजाने में अपने गुरु लालकृष्ण आडवाणी के पुराने जख्मों को कुरेद दिया। उस गठबंधन के दौरान जयललिता ने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की एनडीए सरकार को महज 13 महीनों में धराशायी कर दिया था। यह सर्वविदित है कि उस सरकार में उपप्रधानमंत्री और गृहमंत्री के रूप में आडवाणी ही प्रमुख निर्णय लेते थे। वाजपेयी सरकार के पतन से आडवाणी को गहरा आघात लगा था, जिसके बाद उन्होंने मजबूरी में जयललिता की प्रतिद्वंद्वी करुणानिधि से हाथ मिलाया था। उसी गठबंधन के बूते वाजपेयी ने द्रमुक नेता मुरासोली मारन को केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल कर लगभग पाँच साल तक एनडीए सरकार चलाई थी। यह मजबूरी इसलिए थी, क्योंकि इससे पहले बीजेपी करुणानिधि को अलगाववादी और सनातन विरोधी करार देती थी।