श्रीमती शोभा देवी (परिवर्तित नाम) ने अपना और अपने पति का चार लाख रुपये का हेल्थ इंश्योरेंस सरकारी कंपनी से दस-बारह साल पहले करवाया था। लेकिन इसका प्रीमियम बढ़ता गया और इस साल यह बढ़कर 47,000 रुपये पर जा पहुंचा। इसके पहले वाले साल में यह था 40,000 रुपये। हर साल यह तेजी से बढ़ता जा रहा है। कारण पूछने पर बताया जाता है कि आपकी उम्र बढ़ती जा रही है। ऐसा ही एक उदाहरण आर्थिक पत्र द इकोनॉमिक टाइम्स ने दिया है जिसमें कोलकाता के 38 वर्षीय घोष साहब के पांच लाख रुपये के स्वास्थ्य बीमा की पॉलिसी रिन्यूवल के लिए बीमा कंपनी ने 75,000 रुपये मांगे हैं। यह राशि 10 फीसदी नो क्लेम बोनस के बाद की है। हैरानी की बात है कि स्वास्थ्य जैसे सबसे महत्वपूर्ण विषय पर भी टैक्स की मार है। इस समय हेल्थ इंश्योरंस पर 18 फीसदी जीएसटी है।  

पिछले कुछ सालों से इसे घटाने की मांग हो रही है लेकिन जब इसे घटाने का मुद्दा जीएसटी काउंसिल में गया तो कई राज्यों के वित्त मंत्रियों ने विरोध किया। कुछ ने चुप्पी साध ली और कुछ चाहते थे कि इसे बाद में देखा जाये। यानी हेल्थ इंश्योरेंस से होने वाली कमाई का लाभ सभी उठाना चाहते हैं जबकि उन राज्यों में स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं कोई बहुत अच्छी नहीं है। कुछ राज्यों में तो सरकारी अस्पतालों की स्थिति दयनीय है। उनमें न तो पर्याप्त डॉक्टर हैं और न ही दवाइयां। मरीज घंटों इंतजार करते हैं और कई बार उन्हें अगले दिन आने को कहा जाता है। हमने दिल्ली में देखा है कि यहाँ के ज्यादातर सरकारी अस्पतालों की क्या हालत है। मोहल्ला क्लिनिक तो मजाक बन कर रह गये थे। वे महज पब्लिसिटी के लिए बने थे।