कहॉं हो राम! वर्षों से हमने तुम्हारे नाम की मालाएँ जपीं। दीए जलाए। हज़ारों साल से तुम्हें भगवान माना। हर साल धूम धाम से ‘भय प्रकट कृपाला’ गाकर रामनवमी मनाई। चार सौ साल से तुम्हारे चरित को गाकर यह समाज तुम्हें मर्यादाओं का पुरुषोत्तम मानता है। पर तुम इस विपत्ति के मौक़े पर ग़ायब हो? तुम्हारे चरणामृत से तृप्त होने वाली जनता आज त्राहिमाम कर रही है। कोई सुनने वाला नहीं है। राम, तुम जिस करोड़ों लोगों की आस्था से भगवान हो, वे लोग मानवता के सबसे बड़े संकट से जूझ रहे हैं। भेड़-बकरियों की तरह सड़कों पर मर रहे हैं। क्या तुम्हें उनकी कोई सुध नहीं है? याद रखो राम, जब तुम्हारे ऊपर विपत्ति आई तो इस समाज के आदमी क्या, बंदर-भालुओं ने भी तुम्हारी मदद की थी। आज विपत्ति के इस दौर में तुम मुँह फेरे क्यों बैठे हो!