कहॉं हो राम! वर्षों से हमने तुम्हारे नाम की मालाएँ जपीं। दीए जलाए। हज़ारों साल से तुम्हें भगवान माना। हर साल धूम धाम से ‘भय प्रकट कृपाला’ गाकर रामनवमी मनाई। चार सौ साल से तुम्हारे चरित को गाकर यह समाज तुम्हें मर्यादाओं का पुरुषोत्तम मानता है। पर तुम इस विपत्ति के मौक़े पर ग़ायब हो? तुम्हारे चरणामृत से तृप्त होने वाली जनता आज त्राहिमाम कर रही है। कोई सुनने वाला नहीं है। राम, तुम जिस करोड़ों लोगों की आस्था से भगवान हो, वे लोग मानवता के सबसे बड़े संकट से जूझ रहे हैं। भेड़-बकरियों की तरह सड़कों पर मर रहे हैं। क्या तुम्हें उनकी कोई सुध नहीं है? याद रखो राम, जब तुम्हारे ऊपर विपत्ति आई तो इस समाज के आदमी क्या, बंदर-भालुओं ने भी तुम्हारी मदद की थी। आज विपत्ति के इस दौर में तुम मुँह फेरे क्यों बैठे हो!
राम जब तुम्हारा जन्मस्थान ख़तरे में था तो कश्मीर से कन्याकुमारी तक और अटक से कटक तक लोग उसे बचाने अयोध्या तक चले गए थे। सुप्रीम कोर्ट तक इन आस्थावानों ने तुम्हारे जन्मस्थान की लड़ाई लड़ी। आज तुमने उन्हें उनकी नियति पर छोड़ दिया है।
आप अपनी वंश परंपरा को देखें प्रभु! मरीचि के पुत्र कश्यप थे। कश्यप के विवस्वान, विवस्वान के वैवस्वत मनु हुए और वैवस्वत मनु के पुत्र इक्ष्वाकु। इक्ष्वाकु के पुत्र कुक्षि थे। कुक्षि के पुत्र विकुक्षि। विकुक्षि के पुत्र बाण। बाण के पुत्र अनरण्य हुए। अनरण्य से पृथु। पृथु से त्रिशंकु का जन्म हुआ था। त्रिशंकु के पुत्र धुन्धुमार धुन्धुमार के पुत्र युवनाश्व। युवनाश्व के पुत्र मान्धाता। और मान्धाता से सुसन्धि। सुसन्धि के दो पुत्र हुए- ध्रुवसन्धि एवं प्रसेनजित। ध्रुवसन्धि के पुत्र भरत हुए। भरत के पुत्र असित हुए और असित के पुत्र सगर हुए। सगर के पुत्र का नाम असमञ्ज था। असमञ्ज के पुत्र अंशुमान। अंशुमान के पुत्र दिलीप हुए। दिलीप के पुत्र भगीरथ हुए। भागीरथ के पुत्र ककुत्स्थ। ककुत्स्थ के पुत्र रघु हुए। रघु बहुत पराक्रमी और तेजस्वी राजा थे और उनका प्रताप अत्यधिक था जिसकी वजह से इस वंश का नाम रघुवंश पड़ा।
रघु के पुत्र प्रवृद्ध हुए। प्रवृद्ध के पुत्र शंखण। शंखण के पुत्र सुदर्शन हुए। सुदर्शन के पुत्र अग्निवर्ण। अग्निवर्ण के पुत्र शीघ्रग। शीघ्रग के पुत्र मरु। मरु के पुत्र प्रशुश्रुक। प्रशुश्रुक के पुत्र का नाम अम्बरीश। अम्बरीश के पुत्र का नाम नहुष। नहुष के पुत्र ययाति। ययाति के पुत्र नाभाग। नाभाग के पुत्र का नाम अज। अज के पुत्र दशरथ और राजा दशरथ के चार बेटों में आप।
इतने गौरवशाली वंश परम्परा में आप ही क्यों भगवान हुए? कभी सोचा? क्योंकि आप ग़रीब नवाज़ थे। लोगों का दुख दर्द समझते थे। आप निर्बल का एक मात्र सहारा थे। आपकी कसौटी प्रजा का सुख था। यह लोकमंगलकारी कसौटी आज कहॉं है? आपके मानवीय पक्ष ने ही आप पर ईश्वरत्व थोपा था। दूसरे देवताओं की तरह आपके यहाँ किसी चमत्कार की गुंजाइश नहीं थी। आम आदमी की मुश्किल आपकी मुश्किल थी। आप लूट, डकैती, अपहरण और भाइयों से सत्ता की बेदखली के शिकार हुए थे। जिन समस्याओं से आज का आम आदमी जूझ रहा है।
कृष्ण और शिव हर क्षण चमत्कार करते हैं। पर आप ज़मीन पर लड़ते हैं। आपकी पत्नी का अपहरण हुआ तो उसे वापस पाने के लिए अपनी गोल बनाई। बंदर और भालुओं के साथ दलित शोषित आदिवासी भाइयों ने आपका साथ दिया। लंका जाना हुआ तो उनकी सेना एक-एक पत्थर जोड़ पुल बनाती है। आप कुशल प्रबन्धक थे।
आपमें संगठन की अद्भुत क्षमता थी। आप जब अयोध्या से चले तो महज तीन लोग थे। जब लौटे तो एक पूरी सेना के साथ। एक साम्राज्य का निर्माण कर। यह प्रबन्धन कहॉं चला गया प्रभु। आप मनुष्यता के इम्यूनिटी बूस्टर थे। आज यह प्रताप क्यों नहीं दिखा रहे हैं तात!
वाल्मीकि ने आपके चरित्र पर जो धब्बे लगाए थे तुलसी ने उन्हें धोकर आपको मर्यादा पुरुषोत्तम बनाया। हमारी आस्था ने उसे जस का तस स्वीकार लिया।
हमें बताया गया।
काले वर्षति पर्जन्य: सुभिक्षंविमला दिश:
ह्रष्टपुष्टजनाकीर्ण पुरू जनपदास्तथा।
नकाले म्रियते कश्चिन व्याधि: प्राणिनां तथा।
नानर्थो विद्यते कश्चिद् पाने राज्यं प्रशासति।
यानी जिस शासन में बादल समय से बरसते हों। सदा सुभिक्ष रहता हो सभी दिशाएँ निर्मल हों। नगर और जनपद ह्रष्ट पुष्ट मनुष्यों से भरे हों। वहॉं अकाल मृत्यु न होती हो, प्राणियों में रोग न होता हो। किसी प्रकार का अनर्थ न हो। पूरी धरा पर एक समन्वय और सरलता का वातावरण हो। प्रकृति के साथ तादात्म्य ही रामराज्य है।
प्रभु अब पगलवाइए मत। हमें यह आदर्श रामराज्य नहीं चाहिए। जैसा चल रहा था वैसे ही चलने दीजिए। हमारी आस्था से मत खेलिए। इस आस्था ने आपको भगवान बनाया है अगर आस्था टूटी तो आप भगवान नहीं रहेंगे। हर रामनवमी को मैं आपकी प्रशस्ति में लेख लिखता था। इस बार नहीं लिखूँगा। पहले स्थिति सामान्य कीजिए। अपने होने के महात्म्य को स्थापित कीजिए। हमारा धैर्य अब चुक रहा है।
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