क्या कहूँ? नहीं कह पा रहा हूँ। दिमाग सुन्न है।
सुरों में रहेंगे राजन मिश्र!
- श्रद्धांजलि
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- 27 Apr, 2021

हमेशा हहाकर मिलना। वही मस्ती, वही आत्मीयता। दिल्ली में बनारसियों को इक्कठा करने की कोशिश करने वाला केन्द्र अब नहीं रहा। बनारस एक नागरिकता है, जिसका संबंध जन्म से नही, बल्कि डूब जाने से है। यही डूब कर गाना राजन जी की शैली थी।
बनारसी गायकी का एक नक्षत्र टूटा गया। राजन जी उसी अनन्त में चले गए जहॉं से संगीत के सात सुर निकले थे। जोड़ी टूट गयी। अब साजन जी का स्वर अधूरा रह जायगा। राजन साजन मिश्र की इस जोड़ी ने बनारस के कबीर चौरा से निकल कर दुनिया में ख़्याल गायकी का परचम लहराया।
बड़े राम दास, महादेव मिश्र, हनुमान प्रसाद मिश्र और राजन साजन मिश्र की पारिवारिक परम्परा चार सौ साल पुरानी है। राजन जी को संगीत की शिक्षा उनके दादा पंडित बड़े राम दास और पिता पंडित हनुमान मिश्रा ने दी थी।
रससिद्धता उन्होंने पिता हनुमान प्रसाद मिश्र से ली। हलॉकि वह सांरगी वादक थे। चाचा पं गोपाल मिश्र इन्हें दिल्ली ले आए। घरानेदार बंदिशों और ख़्याल गायन में आपकी जोड़ी सबसे लोकप्रिय थी