श्याम बेनेगल ने अपनी पहली ही फिल्म अंकुर के क्लाइमेक्स में एक बच्चे को पत्थर मारकर काँच तोड़ते हुए व्यवस्था के प्रतिरोध के प्रतीक के तौर पर दिखाया था। बेनेगल ने एक नितांत नयी सी प्रगतिशील सोच के साथ भारतीय सिनेमा में मानवीय समस्याओं के प्रस्तुतिकरण के प्रचलित रूपकों को तोड़ने का जो सिलसिला पहली ही फिल्म से शुरू किया, उनके समूचे काम में उसकी निरंतरता ने उन्हें समानांतर सिनेमा के एक दिग्गज के तौर पर स्थापित किया।