यूं तो दूरदर्शन में मुलाज़मत के चलते हिन्दुस्तान के पांच प्राइम मिनिस्टर्स से अलग अलग वक़्त में साबिका रहा लेकिन सबसे लम्बी और यादगार मुलाकातें डा मनमोहन सिंह के साथ ही रहीं! दूरदर्शन न्यूज़ में रिवायत रही है कि जब भी प्रेसिडेंट या प्राइम मिनिस्टर का कोई मैसेज या एड्रेस टू नेशन रिकार्ड करना होता है तो कैमरा टीम के साथ दूरदर्शन न्यूज़ का एक सीनियर प्रोड्यूसर ज़रूर जाता है जो अपनी ज़िम्मेदारी से इस सबसे अहम काम को अंजाम देता है.
दिल्ली में डीडी न्यूज़ हमने मई 2003 में ज्वाइन किया तब अटल जी की सरकार थी उसके साल सवा साल बाद ही डा मनमोहन सिंह प्राइम मिनिस्टर बनें. यूं तो पहले भी प्राइम मिनिस्टर्स के सारे पब्लिक प्रोग्राम कवर होते थे लेकिन आज की तरह सारे के सारे, वो भी पूरे इवेंट्स लाइव करने की रिवायत नहीं थी. उस दौर में प्राइम मिनिस्टर्स भी डीडी न्यूज़ पर आज की तरह आम लोगों से इतना इंटरेक्शन नहीं करते थे. हां कुछ ख़ास इवेंट्स पर मुख़ातिब ज़रूर होते रहते.
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ऐसे में तीन बार हमें प्राइम मिनिस्टर मनमोहन सिंह को उनके सरकारी घर 7 रेस कोर्स में रिकार्ड करने का मौका मिला. इसके अलावा 2008 में हम यू एन जनरल एसेम्बली को कवर करने वाले प्राइम मिनिस्टर इंटूरेज में भी शामिल थे और तक़रीबन तीन दिनों तक उनके साथ न्यूयार्क में घूमें भी! बहरहाल डा. साहब की पहली रिकार्डिंग कब भी वो अब याद नहीं . एक बार जब उन्हें रिकार्ड कर रहे थे तो डीडी न्यूज़ के डी जी गणेशन भी टीम के साथ मौजूद थे.
रिकार्डिंग के पहले कैमरा मैन की हड़बड़ाहट थी या इक्विपमेंट की कोई ख़ामी कि कैमरा स्टैण्ड पर स्टेबिल नहीं हो रहा था . प्राइम मिनिस्टर मनमोहन सिंह ये सब ख़ामोशी से देख रहे थे और रिकार्डिंग के बाद डीडी न्यूज़ के डी जी गणेशन से बोले,’ इट सीम्स डैट योर इक्विपमेंट्स आर ऑउट डेटेड!’ गणेशन इंडियन इंफॉरमेशन सर्विसेज़ से थे लिहाज़ा इक्विपमेंट या टेक्निकल इश्यूज़ से नावाकिफ़ थे. बुरी तरह घबरा गए. उनके कान के पीछे से पसीने की धार छूटने लगी!
हम डा मनमोहन सिंह से दूसरी बार मिल रहे थे. हर रिकार्डिंग में क़रीब क़रीब घंटे भर साथ रह चुके थे लिहाज़ा कुछ बोलने की हिम्मत जुटा सकते थे. हमसे अपने आर्गनाइज़ेशन के मुखिया की बेबसी और घबराहट बर्दाश्त ना हुई! हमने डा मनमोहन सिंह से कहा,’ सर दिस इज़ व्हॉट वी हैव बीन प्रोवाइडेड!’ डा साहब ने दो तीन सेकेंड तक हमारी ओर देखा फिर पगड़ी ठीक करते हुए अंदर चले गए!
सितम्बर 2008 में हम डा साहब के यू एन इंटूरेज में शामिल थे. पीछे पीछे कवरेज के लिए साथ घूमें. उसके पहले दो बार देर तक मिल चुके थे पर पता नहीं पहचान पाए कि नहीं! वैसे इन बड़े लोगों के साथ एक ख़ास बात ये होती है कि इनकी याददाश्त बहुत तेज़ होती है! तभी इस मुक़ाम तक पहुंच पाते हैं. डा साहब वैसे भी आस पास के साथ चलने वालों को कभी घूर कर नहीं देखते थे !
डा मनमोहन सिंह के साथ सबसे यादगार मुलाकात नवम्बर 2008 की रही! 26 नवम्बर 2008 को पाकिस्तानी टेरोरिस्ट्स ने मुम्बई पर हमला कर दिया था. अगले दिन सुबह सोनिया जी को देश वासियों को एड्रेस करना था. दूरदर्शन की टीम में सुबह सुबह कोई प्रोड्यूसर नहीं मिला तो डीडी न्यूज़ के टेक्निकल हैड को इंचार्ज बना कर भेजा गया. आनंद शर्मा आई एंड बी मिनिस्टर थे वो सोनिया जी के घर पर पहले से मौजूद थे. सोनिया जी की रिकार्डिंग में डीडी न्यूज़ का टेलीप्रॉम्पटर फ़ेल कर गया. आनंद शर्मा ने डीडी न्यूज़ के टेक्निकल हैड को इतना डांटा कि वो भोंगाड़ा मार कर रोने लगा. बहरहाल उसे सोनिया जी के सामने से हटवाया गया और कागज़ देख कर सोनिया जी ने स्क्रिप्ट पढ़ी!
दोपहर को प्राइम मिनिस्टर मनमोहन सिंह को नेशन को एड्रेस करना था. जिस प्रोड्यूसर की ड्यूटी लगाई गई थी उसे सुबह सोनिया जी की रिकार्डिंग की गड़बड़ी की ख़बर लग गई थी लिहाज़ा वो दफ़्तर समय पर आए ही नहीं! हम समय पर दफ़्तर पहुंच गए थे. वहां सबसे सीनियर प्रोड्यूसर थे तो हमें ये ज़िम्मेदारी आनन फ़ानन में सौंप दी गई! दस पंद्रह लोगों के टाम झाम के साथ हम 11 बजे 7 रेस कोर्स पहुंच गए . सारे इक्विपमेंट्स टेस्ट कर इंस्टॉल करवा दिए. प्राइम मिनिस्टर की हिंदी एड्रैस की स्क्रिप्ट तैयार हो रही थी. मनमोहन सिंह हिंदी देवनागरी लिपि में पढ़ना नहीं जानते थे. वो नास्तलिक स्क्रिप्ट (यानि ऊर्दू) में हिन्दी पढ़ते थे.
ढाई बज गए थे. पी.एम.ओ. के एक अफ़सर ने अपनी हिमाक़त में सभी प्राइवेट चैनलों को इंफॉर्मेशन दे दी कि 'पी.एम. का एड्रेस टू नेशन' दोपहर 4 बजे टेलीकास्ट होगा. वही अफसर साढ़े तीन बजे दौड़ते दौड़ते आए और स्क्रिप्ट देकर बोले, 'पी.एम. साहब पन्द्रह मिनट में आ रहा है. फौरन स्क्रिप्ट लोड कर टेस्ट करो.' हम लोगों ने सब कुछ तैयार कर लिया. स्क्रिप्ट की रनिंग स्पीड भी तय कर ली बस पी.एम. का इंतेज़ार था. अब हमें लग गया था कि रिकॉर्डिंग डिले होगी.
डी.डी. न्यूज़ में जाकर टेलीकास्ट करने का अब कोई मतलब ही नहीं था. हमनें ऑफिस फोन कर डायरेक्ट टेलीकास्ट के लिए डी.एस.एन.जी. वैन 7 आर.सी.आर. मंगवा ली . 4 बजने को आ गया था. सारे प्राइवेट चैनल अब इन्फॉर्मेशन देने लगे कि बस कुछ ही समय में प्रधानमंत्री का संदेश देखिए! यहां संदेश रिकॉर्ड ही नहीं हुआ था .पता लगा हिंदी की स्क्रिप्ट फाइनल हो रही है. नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर एम. के. नारायणन रिकॉर्डिंग रूम में आकर बैठ गए. नारायणन ने पूछा , 'प्राइवेट चैनल पर कैसे जा रहा है कि बस थोड़ी देर में!' हमनें फ्रस्टेशन में एम. के. नारायणन से कहा कि, ‘आपके ही फ़लाने अफ़सर ने सभी प्राइवेट चैनल को 4 बजे टेलीकास्ट का टाइम बता दिया. अब बताइए 4 बज चुका है क्या करें!’
एम.के. नारायणन अंदर गए और दो मिनट में वो अफसर दौड़ते हुए नई स्क्रिप्ट ले आए बोले, 'पहले इंग्लिश में रिकॉर्ड कर लो. पहले यही टेलीकास्ट होगी.' पुरानी को पहले डिलीट किया और नई स्क्रिप्ट लोड हुई. इतने में डॉक्टर मनमोहन सिंह आ गए. मनमोहन सिंह निहायत ही 'शांतिप्रिय और कंपोज्ड' इंसान थे. प्रोड्यूसर से खुद पूछते थे, ‘ऑडियो ठीक है? आई लेवल सही है? जब आप इशारा करेंगे हम पढ़ना शुरु कर देंगे!' स्क्रिप्ट तकरीबन पंद्रह मिनट की रही होगी.
डॉक्टर साहब मज़े से पढ़ रहे थे. पढ़ते पढ़ते डॉक्टर साहब बोले, 'योर्स ट्रूली' और चुप हो गए. बोले, 'ये क्या किसी ने चेक नहीं किया था ? कैसे हो गया?' जो अफ़सर स्क्रिप्ट लाए थे वो कमरे से भाग गए. एम.के नारायणन बोले, ‘फिर से करें. फिर से रिकॉर्ड करना होगा.!' अब हमें भी पी.एम. के सामने आग लगाने जा मौक़ा मिल गया कि, 'सर ये स्क्रिप्ट 'कट एंड पेस्ट' की गई है तभी किसी चिठ्ठी की आखिरी लाइन लिख गई,!’ डॉक्टर साहब बोले , ' क्या एन्ड होना चाहिए?' हमने कहा , 'सर इट हैज़ टू बी जय हिन्द!' डॉक्टर साहब ने फिर से पढ़ा और एक बार में पढ़ दिया. हमनें कैमरे को रिवाइंड कर टेप निकाला और बग़ैर रिकार्डिंग टैस्ट किए अपने असिस्टेंट को दिया कि इसे सीधे सैटेलाइट लिंक से टेलीकास्ट करो.
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वो एक बहुत बड़ा और हिम्मत का डिसीज़न था. शायद कोई इतना बड़ा स्टेप नहीँ ले सकता था. लेकिन कभी कभी कॉंफिडेंट होना पड़ता है. हिम्मत से अपने फैसले लेने होते हैं. अगर हम ऐसा ना करते तो टेलिकास्ट में कम से कम एक - डेढ़ घण्टे की और देर ही सकती थी. अपने असिस्टेंट पर पूरा विश्वास था. असिस्टेंट टेप लेकर 7 आर सी आर के बाहर गया. सड़क पार कर टेप अपलिंक किया. हम , पी.एम.के साथ ही बैठे एड्रेस टू नेशन देख रहे थे. पहला टेलीकास्ट हो चुका था. अब हिंदी रिकॉर्डिंग की बारी थी. हिंदी की स्क्रिप्ट उर्दू के नास्तालिक फॉन्ट में आई और वो हमारे लैपटॉप सिस्टम पर कम्पैटिबल नहीं हो रही थी. बड़ी कोशिश की गई उसके बावजूद! प्राइम मिनिस्टर ने हमसे पूछा, ' क्या प्रॉब्लम है? हमें मुंबई जाना है! ' हमनें कहा, 'सर जो स्क्रिप्ट आपके ऑफ़िस ने दी है वो कम्पैटिबल नहीं हो रही है.'
पीएमओ के अफ़सर जो स्क्रिप्ट ला रहे थे वो नदारद थे. हम थे, हमारा असिस्टेन्ट गौरव, इंदु कैमरा परसन और कुछ इंजीनियर. पी एम के अलावा बस नेशनल सिक्योरिटी एडवाइज़र एम. के. नारायणन थे. पी एम ने हमसे कहा, ' आप लोग तो सामने कागज़ पकड़ कर भी करवा देतें हैं!' हमने और कैमरा मैन ने स्क्रिप्ट का फ़ॉन्ट बड़ा करवा कर कागज़ कैमरे के 'आई व्यू' पर पकड़ा और प्राइम मिनिस्टर ने स्क्रिप्ट पढ़ दी. कभी कभी जोख़िम उठाना पड़ता है! ख़ासतौर से तब जब दुनिया भर की निगाहें आपके उस एक एक्शन पर हो! समय की यही दरकार होती है!
(रमन हितकारी के फेसबुक पेज से साभार)
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