उन्हें कभी अनमना प्रधानमंत्री (रिलक्टेंट पीएम) कहा गया, तो कभी "एक्सीडेंटल पीएम"। कुछ के लिए वे गैर राजनीतिक प्रधानमंत्री थे। कुछ के लिए 'दरबारी पीएम'। सही मायने में डॉ. मनमोहन सिंह ऐसे प्रधानमंत्री थे, जिनके दस साल के कार्यकाल के दौरान देश के नागरिकों को सूचना का अधिकार अधिनियम, शिक्षा का अधिकार अधिनियम, वनाधिकार अधिनियम (संशोधन), खाद्य सुरक्षा अधिनियम, भूमि सुधार एवं अधिग्रहण अधिनियम और मनरेगा जैसे आधा दर्जन से अधिक ऐसे संवैधानिक और लोकतांत्रिक अधिकार मिले, जिन पर किसी भी नागरिक को गर्व होना चाहिए। बेशक, 2009 से 2014 तक का उनका दूसरा कार्यकाल विवादों में घिरा रहा, लेकिन यह जगजाहिर हो चुका है कि जिस 2जी स्पेक्ट्रम और कोयला घोटाले के कारण उनकी सरकार पर "पॉलिसी पैरालिसिस" के आरोप लगे, वे कोर्ट में दम तोड़ चुके हैं। देखते ही देखते ऐसा कथानक गढ़ा गया, जिसने उनकी छवि को दागदार बना दिया।
इतिहास आपको याद रखेगा डॉ. मनमोहन सिंह
- श्रद्धांजलि
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- 27 Dec, 2024

2014 में जाते-जाते डॉ. मनमोहन सिंह ने क्यों कहा था कि "मीडिया की तुलना में इतिहास उनके प्रति दयालु होगा"? आख़िर उन्हें रिलक्टेंट पीएम से लेकर ‘एक्सीडेंटल पीएम’, 'दरबारी पीएम' कहने वाले क्या उनके योगदान को कभी समझ पाएँगे?
मनमोहन सिंह कोई खांटी राजनेता नहीं थे, और इसे उन्होंने कभी छिपाया भी नहीं। आज भारतीय अर्थव्यवस्था जिस मुकाम पर खड़ी है, उसमें वही मिडिल क्लास खुद को दोराहे पर पा रहा है, मनमोहन सिंह कभी जिसके चहेते हुआ करते थे। उसी मिडिल क्लास ने उन्हें सत्ता से बेदखल करने में अहम भूमिका निभाई थी, जिसने अन्ना आंदोलन को हवा दी थी। मनमोहन सिंह अर्थशास्त्री थे और उन्होंने 1972 में ही लाइसेंस कोटा राज की खामियों को पकड़ लिया था। और जब 1991 में उन्हें मौका मिला तो उन्होंने प्रधानमंत्री नरसिंह राव की अगुआई में वित्त मंत्री रहते देश की अर्थव्यवस्था को हमेशा के लिए बदल दिया।