नए साल के जश्न और शोर-शराबे में यह ख़बर कहीं पीछे छूट गई है। पिछले कुछ महीने से हड़ताल पर चल रहे सूरत के कपड़ा उद्योग के हमाल पहली जनवरी को वेयरहाउस (गोदाम) मालिकों के साथ हुए मौखिक समझौते के बाद अस्थायी तौर पर काम पर लौट आए हैं। उनकी लड़ाई अभी बाकी है। ये हमाल जिन मांगों को लेकर हड़ताल पर थे, उनमें कपड़े की गठान का वजन 65 किलोग्राम तक सीमित करने की मांग शामिल है। अमूमन ये गठानें पहले 120 से 150 किलोग्राम तक हुआ करती थीं। यानी एक हमाल के खुद के औसत वजन से दो गुना से भी ज्यादा! इस अर्थ में यह अनूठी मांग है कि मजदूर खुद की शारीरिक क्षमता की कीमत मांग रहा है। आखिर एक मजदूर को अपनी शारीरिक क्षमता तय करने का अधिकार क्यों नहीं होना चाहिए?