सवाल बार बार मथ रहा है कि यह क्या हो रहा है? क्यों हो रहा है? चारो तरफ़ मौत का मंजर क्यों है? लग रहा है प्रलय की आहट तेज़ हो रही है।असमय जाते प्रियजन। अशुभ सिलसिला टूट ही नहीं रहा है। चौतरफा अवसाद। हताशा। इसके पीछे कौन है? इसका जवाब हमें इस श्लोक में मिला। गीता के अध्याय 11, श्लोक -32 में कृष्ण कह रहे है अर्जुन से कि सम्पूर्ण संसार को नष्ट करने वाला महाकाल मैं ही हूँ।
कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धोलोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्तः।
ऋतेऽपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे येऽवस्थिताःप्रत्यनीकेषु योधाः ॥ (32)
कृष्ण ने कहा - 'मैं इस सम्पूर्ण संसार का नष्ट करने वाला महाकाल हूँ, इस समय इन समस्त प्राणियों का नाश करने के लिए लगा हुआ हूँ, यहाँ मौजूद लोगों को तुम अगर नहीं मारोगे तो भी वे मरेंगे क्योंकि काल उन्हें मारना चाहता है।'
क्या कहा था कृष्ण ने?
'सहस्त्रों सूर्यों का ताप मेरा ही ताप है। एक साथ सहस्त्रों ज्वालामुखियों का विस्फोट मेरा ही विस्फोट है। शंकर के तीसरे नेत्र की प्रलयंकर ज्वाला मेरी ही ज्वाला है। शिव का तांडव मैं हूँ। प्रलय मैं हूँ। लय मैं हूँ। विलय मैं हूँ। प्रलय के वात्याचक्र का नर्तन मेरा ही नर्तन है। जीवन मृत्यु मेरा ही विवर्तन है। ब्रह्माण्ड मैं हूँ। मुझमें ब्रह्माण्ड है। संसार की सारी क्रियमाण शक्ति मेरी भुजाओं में है। मेरे पगों की गति ही धरती की गति है।'
आज से लगभग पाँच हजार एक सौ साल पहले कुरूक्षेत्र में भगवान कृष्ण ने यह कहा था। कहने वाले कृष्ण, इसे सुनने वाले अर्जुन और लिपिबद्ध करने वाले महर्षि व्यास हैं। यह युद्ध के मैदान में लिखी गयी संसार की पहली किताब है। गीता में कोई 700 श्लोक है। वह महाभारत का हिस्सा है। कुरूक्षेत्र के ज्योतिसर के पास कृष्ण ने अर्जुन को यह राजनैतिक भाषण दिया था। उनके इस भाषण को चार और लोग सुन रहे थे। वे थे पवन पुत्र हनुमान, महर्षि व्यास, धृतराष्ट्र की दृष्टि संजय और बर्बरीक। बर्बरीक भीम का पौत्र और घटोत्कच का पुत्र था।
यानी जो कुछ हो रहा है वह काल कर रहा है और कालोऽस्मि खुद मधुसूदन आप हैं, तो हे माधव जब सब कुछ आप हैं, संसार की सारी ताक़तों का 'सिंगल विन्डो सिस्टम' आप हैं, इस फ़ानी दुनिया को नष्ट करने वाले भी आप ही हैं, तो कहॉं है इस वक्त आप प्रभु?
'अश्वत्थामा हतो नरो वा कुंजरो'
अब तो कोई रास्ता निकालिए। आप तो सिर्फ धर्म सम्मत ही नहीं, धर्मेतर रास्ते भी निकालते रहे है। जयद्रथ को षड्यंत्र के तहत मारना हो, कर्ण को धोखे से निपटाना हो, आपने वह सब कुछ किया, जो समाज के लिए जरूरी था।
'अश्वत्थामा हतो नरो वा कुंजरो' का कुटिल संदेश आज तक गूंज रहा है। ये सन्देश आपके धर्मेतर कारगुज़ारियों का युगान्तकारी प्रतीक है नंदलाल। आपने तो सच के बेताज बादशाह युधिष्ठिर से भी अर्ध सत्य कहलवा दिया। आपकी योजना के मुताबिक़, अवंतिराज के अश्वत्थामा नामक हाथी का भीम द्वारा वध कर दिया गया। इसके बाद युद्ध में यह बात फैला दी गई कि 'अश्वत्थामा मारा गया'।
जब गुरु द्रोणाचार्य ने धर्मराज युधिष्ठिर से अश्वत्थामा की सत्यता जानना चाही तो उन्होंने जवाब दिया- 'अश्वत्थामा मारा गया, परंतु हाथी।' अपने उसी समय शंखनाद किया जिसके शोर के चलते गुरु द्रोणाचार्य आखिरी शब्द 'हाथी' नहीं सुन पाए और उन्होंने समझा मेरा पुत्र मारा गया। यह मर्मान्तक सूचना सुन द्रोण शस्त्र त्याग शोक में डूब गए। इसी समय द्रौपदी के भाई धृष्टद्युम्न ने तलवार से उनका सिर काट डाला। दुनिया ने धोखे से द्रोण का सर काटते हुए धृष्टद्युम्न को देखा पर पर्दे के पीछे तो आप ही थे बंशीधर।
बर्बरीक की बलि
दुर्योधन की जंघा के नीचे प्रहार, दुःशासन की छाती को चीरना, सब आपके ही इशारे की देन था वासुदेव। महाबली भीम के अजेय पौत्र बर्बरीक की बलि भी आपकी की योजना ने ली। वह मार्ग भी धर्म की सीमाओं के परे था माधव। बर्बरीक की प्रतिज्ञा थी कि वह हारते पक्ष के साथ खड़ा हो जाएगा। सो आप ब्राह्मण का भेष बनाकर सुबह सुबह बर्बरीक के शिविर के द्वार पर पहुंच गए और दान मांगने लगे। बर्बरीक ने कहा मांगो ब्राह्मण! क्या चाहिए? आपने उसे उकसाया कि तुम दे न सकोगे। बर्बरीक आपके जाल में फंस गए और आपने उसका शीश मांग लिया। माना ये सब धर्म की स्थापना के लिए था गोपाल , पर रास्ता तो धर्म का नही था।
आपके ही कहने पर पांडवों ने भीष्म से उनकी मृत्यु का रहस्य पूछा। भीष्म ने अपनी मृत्यु का रहस्य यह बताया था कि वे किसी नपुंसक व्यक्ति के समक्ष हथियार नहीं उठाएंगे। इसके बाद पांडव पक्ष ने युद्ध क्षेत्र में भीष्म के सामने शिखंडी को युद्ध करने के लिए लगा दिया। युद्ध क्षेत्र में शिखंडी को सामने डटा देखकर भीष्म ने अपने अस्त्र-शस्त्र त्याग दिए। इस मौके का फ़ायदा उठाकर आपके इशारे पर अर्जुन ने अपने बाणों से भीष्म को छेद दिया। देवकीनन्दन, आपके ये सभी कृत्य धर्म को जयी बनाने के लिए थे, लेकिन अधर्म के सहारे थे। साधन की पवित्रता का कोई अर्थ नही था।
फिर क्या नीति क्या अनीति! माना की इस समाज में अनीति का बोलबाला बढ़ गया है। तो क्या इसे भी बचाईए। यहॉ आप आदर्शवादी कैसे हो सकते है?
महामारी का कोई रास्ता निकालिए!
इस महामारी का भी कोई रास्ता निकालिए न शकटासुरभंजन। आप संसार को नष्ट करने वाले काल है तो इस काल की गति कहॉं रुकेगी? यह अन्याय है। बेईमानी है। वे लोग काल के चपेटे में आ रहे है, जिनकी यहॉं ज़रूरत है।
आपने ही कहा था यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ....कि जब जब धर्म की हानि होगी आप अवतार लेंगे। यह धर्म की हानि नहीं तो क्या है सच्चिदानंद! कितने ही धर्म परायण इस दुनिया से विदा हो गए। अगर दूर से नही संभल रहा है तो नजदीक आइए। हमारे बीच आइए। फिर अवतार लीजिए। ये महामारी सुरसा की तरह मुँह बाए बढ़ी आ रही है, इसका नाश कीजिए।
आपने ही तो योगक्षेमं वहाम्यम का संकल्प लिया था। ऐसे में अगर आप नही आएंगे तो हमारे योग और क्षेम का जबाबदेह कौन होगा? हमारे लिए नही तो अपने संकल्प के लिए आइए पार्थसारथी। काल को आपकी प्रतीक्षा है। वरना इतिहास आपके भगवानत्व पर सवाल खड़े करेगा।
अपनी राय बतायें