मातृरूपेण संस्थिताकोई तीस बरस पहले मेरी बीमार मॉं ने मुझसे कहा- ‘मैं पूरे नवरात्रों का उपवास रखती हूँ। अब अस्पताल से यह संभव नहीं होगा। तो फिर तुम इस उपवास को सँभालो’। माता चली गयीं और तब से बिना रुके मैं और वीणा वासंतिक और शारदीय नवरात्र के नौ रोज़ उपवास करने लगे हैं। मातृरूपेण संस्थिता को मानते हुए।
दुर्गा पूजा: स्त्री के सम्मान, ताक़त व स्वाभिमान की सार्वजनिक पूजा
- धर्म
- |
- |
- 4 Oct, 2022

दुर्गा पूजा सिर्फ़ मिथकीय नहीं, यह स्त्री के सम्मान, ताक़त, सामर्थ्य और उसके स्वाभिमान की सार्वजनिक पूजा है। जिस समाज में स्त्री का स्थान सम्मान और गौरव का होता है, वही समाज सांस्कृतिक लिहाज से समृद्ध होता है। ‘अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी।’ इस लाचारी के बरक्स ‘के बोले माँ तुमि अबले’ की हुंकार इस फर्क को साफ़ करती है।
हमारी इस मान्यता के पीछे माँ की शक्ति है। उनकी साधना है। उनका आशीर्वाद है। ‘शक्ति’ को साधने का ही उत्सव है दुर्गा पूजा। हम सबमें ऊर्जा की इकलौती स्रोत है शक्ति। हर किसी को शक्ति चाहिए। सत्ता में आने की, रोज़ी रोटी की, शत्रु से लड़ने की, भूख से लड़ने की। देश का नेता हो या आमजन, सभी को शक्ति चाहिए। यानी सबकी व्याकुलता शक्ति के लिए है। दरअसल, धारणा यह है कि देश में गऊपट्टी में रहनेवालों के पास अध्यात्म तो है पर शक्ति नहीं है। इसलिए शक्ति पाने के लिए हमारे पुरखों ने साल में दो बार नवरात्र पूजा का विधान किया जीवन और समाज की रक्षा के लिए। इन नवरात्रों में शक्ति के उत्सव में आमजन इस कदर लीन होता है कि स्पर्श, गंध और स्वर सबमें शक्ति को महसूस करने लगता है। दुर्गा पूजा का प्राणतत्त्व उसका यही लोकतत्त्व है।