शर्मिंदा हूँ ताविषी जी! हम आपको बचा नहीं पाए। आपको समय पर इलाज नहीं दिला पाए। 40 बरस तक जिस लखनऊ में मुख्यधारा की पत्रकारिता आपने की, उससे इस व्यवहार की आप हक़दार नहीं थी। ताविषी जी! आपको हमसे कोरोना ने नहीं, सिस्टम ने छीना है। यह टूट चुका सिस्टम आपको समय से अस्पताल का एक बेड नहीं दिलवा पाया। और आप चली गईं।