मैं विवादित इमारत से कोई सौ गज दूर खड़ा था। सन्न और अवाक्! समझ नहीं आ रहा था कि मैं जो देख रहा हूँ, वह हकीकत है या बुरा सपना। चारों तरफ बदला! प्रतिशोध!! प्रतिहिंसा का हुंकारा!!! सबकुछ अचानक हुआ। कारसेवक बाबरी ढाँचे पर चढ़ चुके थे। पुलिस प्रशासन को काटो तो खून नहीं। पर किंकर्तव्यविमूढ़, बेबस और लाचार। मैंने पुलिसबलों का ऐसा गांधीवादी चेहरा पहली बार देखा। 46 एकड़ का पूरा इलाका ध्वंस के जुनून में था। समूचा दृश्य दिल दहलाने वाला था। कोई दो सौ कारसेवक विवादित इमारत के तीनों गुंबदों पर चढ़ लोहे के रॉड, गैंते और सरियों से चोट कर रहे थे। नीचे कोई एक लाख कारसेवकों ने इमारत को घेर रखा था।
अयोध्या में 6 दिसंबर को आख़िर हुआ क्या था? जानें आँखोंदेखी घटनाक्रम
- विचार
- |
- |
- 6 Dec, 2022

आज बाबरी ध्वन्स की तीसवीं बरसी है। तीस साल हो गए अयोध्या में इस घटना के। वरिष्ठ पत्रकार हेमंत शर्मा इस घटना के गवाह थे। उस रोज पूरे वक्त वो वहीं खड़े थे। ध्वन्स पर चश्मदीद का वृतांत उन्होंने अपनी किताब ‘युद्ध में अयोध्या’ में कलमबद्ध किया है। पढ़ें।
उस रोज मर्यादा पुरुषोत्तम के नाम पर हर कोई अमर्यादित था। एक-एक कर तीनों गुंबद टूटे। और उखड़ी हिंदू समाज की विश्वसनीयता, वचनबद्धत्ता और उत्तरदायित्व की जड़ें!