कुंभ करोड़ों हिंदुस्तानियों की आस्था का पर्व है। इस परम्परा के केन्द्र में आस्था ही है। और आस्था व्यक्ति की होती है। समाज की होती है। जब व्यक्ति और समाज ही नहीं बचेंगे तो आस्था का क्या करेंगे? कौन मनाएगा कुंभ? कौन लगाएगा पवित्र डुबकी?  जन आस्थाएँ ही कुंभ और दूसरे उत्सव मनाती हैं। कुंभ में जो करोड़ों लोग आते हैं उन्हें कोई न्योता नहीं दिया जाता। न विज्ञापन। न रहने खाने का प्रबन्ध। न ढोकर लाई जाने वाली बसें। न कोई साजो सामान। उन्हें हमारी आस्था ही खींचकर ले आती है।