डेढ़ महीने से कुछ लिखा नहीं। डॉक्टरों ने मना किया था कि फोन और कंप्यूटर पर न लिखें। क्योंकि सर्वाइकल का दर्द कंधे से उतरकर हाथ पर आ गया था। पर दो रोज पहले न जाने किस घड़ी में ‘आदिपुरुष’ देखी। आदिपुरुष से उपजे क्षोभ के ‘विर्पजॉय’ ने लिखने से परहेज के मेरे संकल्प को तोड़ दिया।
हेमंत शर्मा की टिप्पणी: मनोज मुंतशिर ने हनुमान का मजाक क्यों उड़ाया?
- विचार
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- 29 Jun, 2023

आदिपुरुष फिल्म पर विवाद क्या बिना कारण है? इसके संवाद पर इतने सवाल क्यों उठ रहे हैं? मनोज मुंतशिर के संवाद में आख़िर क्या गड़बड़ियाँ हैं?
ऐसी छिछोरी, टुच्ची और छिछली फिल्म मैंने पहले कभी नहीं देखी। पात्रों के ‘लुक’, ‘फील’, ‘ट्रीटमेंट’ और ‘संवाद’ टपोरी या कहें सड़कछाप हैं। फिल्म सभी पहलुओं पर घटियापन के रिकॉर्ड तोड़ती है। ‘क्रिएटिव फ्रीडम’ के नाम पर ऐसे बेहूदे सृजन की इजाजत किसी को नहीं दी जा सकती है। रामकथा हमारे सांस्कृतिक सूत्रों को जोड़ती है। वह भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों की चिरंतन धारा है। फिल्म अनंत काल से चली आ रही इस प्रचलित आस्था के खिलाफ है। हमारे समाज की आत्मा ‘राज्यसत्ता’ में नहीं ‘धार्मिक आस्था’ में बसती है। मनोज मुंतशिर के यह बेशर्म पटकथा और संवाद इस आस्था पर चोट पहुंचाते हैं। रामायण की सबसे बड़ी विशेषता उसकी मर्यादा है। पर इस फिल्म में मर्यादा नाम की कोई चीज नहीं है। है तो धार्मिक, वैचारिक खोखलापन। मूर्खता और धूर्तता कुपढ़ों में दो लक्षण होते हैं। मुंतशिर ने यह अपराध मूर्खता में नहीं धूर्तता के चलते किया है। मूर्खता ईश्वर प्रदत होती है इसलिए क्षम्य है। और धूर्तता राष्ट्रवाद का खोल ओढ़ पैसा कमाने की ओछी चाहत है।