बसंत दुष्ट है।उसके चाल चलन अच्छे नहीं है।बसंत काम और रति का पुत्र है, सखा भी।यह सभी वर्जनाएं तोड़ने को आतुर रहता है। इस शुष्क मौसम में काम का ज्वर बढ़ता है। विरह की वेदना बलवती होती है। तरुणाई का उन्माद प्रखर होता है।मनुष्य तो मनुष्य पेड़ पौधे भी अपने पत्ते उतार नंगे हो जाते है।यौवन हमारे जीवन का बसंत है और बसंत सृष्टि का यौवन। वसंत के आते ही जल , नभ , और थल तीनो में हलचल शुरू हो जाती है।बसंत बेपरदा है।सबके लिए खुला है। लूट सके तो लूट। कवि पद्माकर कहते हैं-'कूलन में, केलिन में, कछारन में, कुंजन में, क्यारिन में, कलिन में, कलीन किलकंत है। बीथिन में, ब्रज में, नवेलिन में, बेलिन में, बनन में, बागन में, बगरयो बसंत है।'