तुलसी का रामराज्य समतामूलक है। रामचरितमानस में राज्य की अनीति के प्रति क्रोध है। राजतंत्र के उत्कर्ष का अस्वीकार है। जनतंत्र की नई अवधारणाएं है। और लोकतंत्र के चरम आदर्शों की कल्पना है। वे लोकमंगल के ध्वजवाहक हैं। जन मन के कवि हैं।तुलसी ने वाल्मीकि और भवभूति के राम को पुनर्स्थापित नहीं किया। उनका राम सोलहवीं-सत्रहवीं सदी के भारत की विषमताओं को तोड़ता एक लोकतांत्रिक नायक है।