तुलसी का रामराज्य समतामूलक है। रामचरितमानस में राज्य की अनीति के प्रति क्रोध है। राजतंत्र के उत्कर्ष का अस्वीकार है। जनतंत्र की नई अवधारणाएं है। और लोकतंत्र के चरम आदर्शों की कल्पना है। वे लोकमंगल के ध्वजवाहक हैं। जन मन के कवि हैं।तुलसी ने वाल्मीकि और भवभूति के राम को पुनर्स्थापित नहीं किया। उनका राम सोलहवीं-सत्रहवीं सदी के भारत की विषमताओं को तोड़ता एक लोकतांत्रिक नायक है।
राम का लोकतंत्रीकरण करते हैं तुसली!
- विचार
- |
- |
- 18 Jan, 2024

तुलसी अपने समय के देश को देखते, समझते हैं। उसमें उसकी विषमताएं, अच्छाइयां, बुराइयां, सुख-दुख सब शामिल है, रामराज्य उस युग की आशा, आकांक्षा का प्रतीक स्वप्न है।
तुलसी का समकालीन युग वास्तव में सामाजिक विषमता और आर्थिक रूप से सामंतशाही के विद्रूपताओं का युग था। एक दूसरे के ऊपर आक्रमण और साथ साथ जातिभेद चरम पर था। ऐसे में जब दुखियों को गले लगाने वाला कोई नहीं था तब तुलसी ने राम कथा के ज़रिए भगवान राम के लोकवादी रूप की कल्पना की। यह कवि का प्रयास था क्योंकि तुलसीदास ने पहले ही लिख दिया है कि मानस एक स्वतंत्र और स्वातं सुखाय रचना है और उनके पास कविता का कोई विवेक नहीं है।कवित्त विवेक एक नहीं मोरे। तुलसी को कविताई का जरा भी अभिमान नहीं है।
इसलिए तुलसी के भगवान की लोकवादी छवि को तत्कालीन युग की आवश्यकता के अनुसार देखना होगा। निर्बल और दीन हीन की सहायता से ही रावण को मात देने वाले राम हैं। तुलसी के राम निर्बल के राम है, दीन- हीन के राम हैं।