‘आपको लिखना चाहिए’, मेरे युवा मित्र ने कहा।वह 22 अप्रैल, 2025 को कश्मीर के पहलगाम में हुए दहशतगर्द हमले के संदर्भ में बात कर रहा था। क्या कहना चाहिए मुझे या मुझ जैसे लोगों को? क्यों कुछ बोलना ही चाहिए? क्या बोलना कोई पेशा है? क्या कोई क्या बोले और कैसे बोले कि वह सुनाई भी पड़े? किसके लिए बोलें? कौन सुनना चाहता है?और क्या सुनना चाहता है? वह क्या है जिसे सुनने की इच्छा पैदा की जा रही है? और क्या वही मुझे बोलना चाहिए?
पहलगामः कश्मीरी बोल रहे हैं, लेकिन क्या शेष भारत सुन रहा है/सुनना चाहता है?
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- 28 Apr, 2025
पहलगाम आतंकी हमले के बाद कश्मीरी हिंसा की निंदा कर रहे हैं - लेकिन क्या बाकी भारत उन्हें सुन रहा है? सोशल मीडिया देखें तो उनके खिलाफ ज़हर उगला जा रहा है। स्तंभकार अपूर्वानंद का बेबाक विश्लेषणः
