क्या भगवान के प्रति श्रद्धा का रूप भी बदलता है? आख़िर काँवड़ यात्रा का रूप इतना कैसे बदल गया? काँवड़ यात्रा का राष्ट्रवादीकरण क्या सामान्य घटना है? क्या यह विकृति नहीं है?
बरेली के एक स्कूल में अल्लामा इक़बाल की दुआ होने पर शिक्षकों वज़ीरुद्दीन और नाहिद सिद्दीक़ी पर कार्रवाई की गई। विश्व हिंदू परिषद और हिंदुत्ववादियों को इस दुआ से परेशानी थी। क्या वे बुराई से बचने और नेक राह पर चलने की प्रेरणा को आपत्तिजनक मानते हैं?
शाहरुख़ ख़ान ने कोलकाता के अन्तर्राष्ट्रीय फ़िल्म समारोह में दिमाग़ी और भावनात्मक संकरेपन की बात की। उन्होंने हम जिंदा हैं, कहकर यह बताने की कोशिश की कि हमें नकारात्मकता से लड़ते हुए खुद को सकारात्मक बनाना होगा।
‘दृष्टि’ के संस्थापक और अध्यापक डॉक्टर विकास दिव्यकीर्ति ने वाल्मीकि रामायण और महाभारत के प्रसंगों को उद्धृत भर किया था। लेकिन बिना उनकी पूरी बात सुने भावनाएं आहत होने के नाम पर उन्हें निशाने पर ले लिया गया। क्या उनकी गिरफ्तारी भी हो सकती है?
भगवान गणेश की कथा को ब्रह्मांड में पहली प्लास्टिक सर्जरी की घटना बताना या फिर सुश्रुत को पहला शल्य चिकित्सक बताना, क्या इन बातों के पीछे कोई वैज्ञानिक तर्क है।
बीजेपी की कश्मीर नीति किसके हित में है? कश्मीरी पंडितों के? मुसलमानों के? क्या वह कभी भी किसी के हित में रही? ताक़तवर दमनतंत्र के बावजूद कश्मीर में सामान्य जीवन क़ायम क्यों नहीं किया जा सका है?
क्या हिंदी को पूरे देश पर थोपने की कोशिश की जा रही है? क्या इस भाषा का राजनीतिक इस्तेमाल किया जा रहा है? अगर ऐसा है तो यह निश्चित रूप से बेहद चिंता की बात है।
बीते दिनों कई राज्यों में हुई सांप्रदायिक तनाव की घटनाएं इसी ओर इशारा करती हैं कि समाज से सहानुभूति को खत्म करने की पुरजोर कोशिश की जा रही है। भारत के लिए यह अच्छा संकेत नहीं है।
पांच राज्यों के बहुसंख्यकवादी जनादेश के बाद क्या धर्मनिरपेक्ष राजनीति के लिए रास्ता ख़त्म हो जाएगा? क्या अल्पसंख्यक समुदाय के हक़ों की हिफाजत हो सकेगी?