हमें, भारत के लोगों को घृणा और हिंसा की आदत डाली जा रही है। इस हिंसा के संदर्भ में तीन तरह के लोगों में भारतीय समाज बँट गया है। एक जो घृणा के प्रचार और हिंसा में शामिल हैं। इसमें भी दो तरह के लोग हैं। एक जो इसकी योजना बनाते हैं और सुरक्षित रहते हैं, दूसरे, जो इसमें सक्रिय रूप से शामिल होते हैं। जिन्हें इस हिंसा के आयोजन का पूरा संदर्भ पता नहीं लेकिन जो मानते हैं कि इसका निर्णय उन्होंने ही किया है।
क्या भारत हिंसा के दुष्चक्र में फँस गया है?
- वक़्त-बेवक़्त
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- 18 Apr, 2022

घृणा और हिंसा का समर्थन इतना उद्धत होता है कि उसका विरोध तो दूर, उसकी आलोचना करने से भी अकेले पड़ जाने का भय होता है। इसलिए वे मन ही मन घृणा और हिंसा के खिलाफ होते हुए भी उसे घटित होते देखते रहते हैं। क्या वे इसके हिस्सेदार हैं?
हिंसा इन्हें ताकतवर होने का अहसास या भ्रम भी देती है। चूँकि ये अबाधित हिंसा कर सकते हैं, इन्हें ठीक ही लगता है कि राज इन्हीं का है। इनके पास संख्या बल है, हथियारों का बल भी है। लेकिन ये कभी कभी कानून की पकड़ आ जाते हैं ।
एक और तरह के लोग हैं जो इस हिंसा का प्रशिक्षण देते हैं। वे उसमें हाथ नहीं लगाते लेकिन हिंसक दिमाग तैयार करते रहते हैं। वे चूँकि कभी सीधे हिंसा में शामिल नहीं होते, इसलिए कानून के दायरे से बाहर रहते हैं। उनके चलते हिंसा का वृत्त बढ़ता रहता है।