एक कवि कितना महत्वपूर्ण होता है? उस पर आप कितना वक्त दे सकते हैं? पिछले हफ़्ते पटना में दो दिनों में क़रीब 200 लोग 6 घंटे तक अशोक वाजपेयी को सुनते रहे। पहले उनकी जीवन यात्रा, फिर साहित्य, कलाओं के बारे में उनके विचार और फिर उनकी गद्य रचनाओं के साथ उनकी कविताएँ। इस सुनने और सुनाने से क्या हुआ होगा?
प्रेम की तरह जनतंत्र के लिए जगह बनानी होगी
- वक़्त-बेवक़्त
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- 12 Dec, 2022

दिल्ली में प्रेस क्लब तक अब कुछ विषयों पर चर्चा की अनुमति नहीं देता। पहले जो अनौपचारिक जगहें हुआ करती थीं, जैसे कंस्टीट्यूशन क्लब का लॉन, वह अब सुंदर बना दिया गया है और आप वहाँ बैठ क्या खड़े भी नहीं हो सकते। वहाँ भी कतिपय विषयों पर चर्चा नहीं हो सकती। विश्वविद्यालयों में तो अब मात्र राष्ट्रवादी आलाप ही लिया जा सकता है।
लाखों की आबादी वाले शहर में 200 कोई बड़ी संख्या नहीं। एक कवि और उसके श्रोताओं के बीच का यह संवाद शहर की चेतना के समंदर में कंकड़ फेंकने जैसा है। लेकिन लेखक और उसके समाज का संबंध कुछ ऐसा ही होता है।
शहर में उसका होना कोई खबर नहीं। उसके आने पर ढोल बाजे के साथ स्वागत करने वाले झुंड में नहीं आते। वह अख़बार और टी वी के पहले पृष्ठ पर नहीं होता या होती। उसकी इस इतिहास प्रमाणित नगण्यता के बावजूद यह भी सच है कि समाज अपने कवि या लेखक से पहचाने जाने में ही गौरव का अनुभव करता है। या यह भी एक प्रकार का भ्रम है?