आज सुबह कार्टून देखा। श्रीलंका के किसी कार्टूनिस्ट का। एक अर्धनग्न दुर्दांत पुरुष एक मुसलमान औरत का कपड़ा खींचे जा रहा है। हिंदू, ओह, नहीं; भारतीय सांस्कृतिक स्मृति ने बतलाया कि अरे ये तो दुःशासन और द्रौपदी हैं! यह द्रौपदी के चीर हरण का दृश्य है। साफ़ है कि उस पुरुष के पास राजसी अधिकार और अहंकार दोनों हैं। वह राजा दस्यु अधिक लग रहा है और उसके मुकुट पर इंडिया लिखा है।
कर्नाटक हिजाब विवाद: क्या आपने श्रीलंका के कार्टूनिस्ट का कार्टून देखा?
- वक़्त-बेवक़्त
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- 14 Feb, 2022

बहुत दिन नहीं हुए जब हिंदू समाज में ऐसी आवाजें थीं। ऐसे नेता थे जो हिंदू समाज को लेकर चिंतित थे, मुसलमान या ईसाई उनकी चिंता का विषय नहीं थे। उनकी निगाह भीतर की तरह मुड़ी हुई थी। अपनी कमियों, हीनताओं, विकृतियों पर बात करने से उन्हें संकोच नहीं होता था। लेकिन आज हिंदू नेता हिंदुओं के बारे में कम, मुसलमानों और ईसाइयों के बारे में अधिक बात करते हैं।
कार्टून का ‘इंडिया’ मुसलमान नारी का चीर हरण कर रहा है! लेकिन कार्टून अतिशयोक्ति करके भी सच ही तो हुआ करता है! तभी तो तमाचे की तरह चोट करता है। तो यह छवि भारत की दुनिया में बन रही है!
देखकर धक्का लगा, शर्म आई। मुकुटधारी पुरुष प्रतीकात्मक रूप से भारतीय राज्य है जो प्रकटतः हिंदू है। सोचने लगा कि इस कार्टून को बनाने वाले ने क्या मध्य प्रदेश के अर्धनग्न मुख्यमंत्री और सरसंघ चालक की तसवीरें देखी थीं जो हैदराबाद से पूरे विश्व में प्रसारित की गई थीं? मैं कहना चाहता हूँ कि इस दस्यु को भारत कहना उचित नहीं है। कहना चाहें तो भारत सरकार कह लीजिए, भारत के शासक कह लीजिए लेकिन भारत में तो मुसलमान हैं, ईसाई, सिख, पारसी, जैन और बौद्ध भी। आदिवासियों का तो वह पहले से है। उन्हें इस प्रतीक में बदलना क्या न्यायसंगत है?