यह बहुत विचित्र दृश्य था। बीभत्स भी कह सकते हैं, अगर आपकी धर्मनिरपेक्ष और मानवीय संवेदनाएँ तीक्ष्ण हों। भगवा गमछा ओढ़े हुए लड़कियाँ माइक पर आक्रोश जाहिर कर रही हैं। किसलिए? किसके ख़िलाफ़? वे अपनी हमउम्र उन मुसलमान लड़कियों के ख़िलाफ़ बोल रही हैं जिन्हें उनकी कक्षा में जाने से रोक दिया गया है क्योंकि उन्होंने हिजाब पहन रखा है। मुसलमान लड़कियों का कोई विरोध हिंदू लड़कियों से नहीं है। उनके हिजाब पहनने से हिंदू लड़कों, लड़कियों को क्या आपत्ति हो सकती है, यह समझना असंभव है।
हिजाब के विरोध में भगवा गमछा; क्या मानवीय गुण भी छोड़ दिया?
- वक़्त-बेवक़्त
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- 7 Feb, 2022

जहाँ पहले मुसलमान लड़कियाँ कॉलेज प्रशासन से मुखातिब थीं, अब उनके सामने एक हिंदू पक्ष को खड़ा कर दिया गया। यानी जिनसे उनका कोई झगड़ा नहीं, वे ही उनसे लड़ने को उतारू हैं। इससे प्रशासन को आसानी हो गई। अब वह मुसलमान छात्राओं से कह सकता है कि देखिए हम उन्हें मना कर रहे हैं तो आपको भी करना पड़ेगा।
स्वाभाविक तो यह होता कि जब मुसलमान छात्राओं को रोक दिया गया तो हिंदू छात्राएँ और छात्र उनके साथ खड़े होते। क्यों मुसलमान लड़कियाँ हिजाब पहनकर कक्षा करना चाहती हैं, हिंदू सहपाठी उनसे पूछते। उन्होंने यह भी नहीं सोचा कि कल तक जिससे कोई परेशानी न थी, वह आज अचानक विवाद का विषय कैसे बन गई? लेकिन आज के भारत में सहानुभूति दुर्लभ है। चूँकि सहानुभूति नहीं है, उत्सुकता और जिज्ञासा भी नहीं है। है एक अतार्किक क्रोध, प्रतिशोध का भाव। हो सकता है, अगर उन्होंने अपनी मुसलमान सहपाठियों से पूछा होता तो उन्हें अलग-अलग व्यक्ति से हिजाब पहनने की अलग-अलग वजह मालूम होती। जैसा निशा सूसन ने लिखा है हरेक के पास हो सकता है, हिजाब की अलग-अलग कहानी हो। वह हिजाब उन्हें मदद क्यों कर रहा है, इसकी जिज्ञासा संभव है आपमें कुछ संवेदनशीलता बढ़ाती। लेकिन इन कहानियों को जानने के लिए क़रीब के लोगों में रुचि होना ज़रूरी है। लेकिन भगवा गमछा डाले लड़कियों के चेहरों को देखकर नहीं लगा कि उनमें यह है।