जिसे शासक दल भारत का अमृत वर्ष कह रहा है, उसी वर्ष में सुभाषचंद्र बोस ने जिसे राष्ट्रपिता कहा था, उस गाँधी की हत्या का 75वां साल भी शुरू हो रहा है। स्वतंत्रता निश्चय ही अमृत है लेकिन उसमें इस हत्या का ही नहीं, इस हत्या की विचारधारा का विष मिला हुआ है, यह बात 30 जनवरी हमें भूलने नहीं देती। 30 जनवरी हमारे राष्ट्रीय चरित्र पर पड़नेवाली एक सर्चलाइट है। ऐसी जो उस चरित्र को छिपने की कोई जगह नहीं छोड़ती। एक देश, राष्ट्र या समाज के तौर पर हमें 30 जनवरी की रौशनी में खुद को पहचानने की ज़रूरत है।