जिसे शासक दल भारत का अमृत वर्ष कह रहा है, उसी वर्ष में सुभाषचंद्र बोस ने जिसे राष्ट्रपिता कहा था, उस गाँधी की हत्या का 75वां साल भी शुरू हो रहा है। स्वतंत्रता निश्चय ही अमृत है लेकिन उसमें इस हत्या का ही नहीं, इस हत्या की विचारधारा का विष मिला हुआ है, यह बात 30 जनवरी हमें भूलने नहीं देती। 30 जनवरी हमारे राष्ट्रीय चरित्र पर पड़नेवाली एक सर्चलाइट है। ऐसी जो उस चरित्र को छिपने की कोई जगह नहीं छोड़ती। एक देश, राष्ट्र या समाज के तौर पर हमें 30 जनवरी की रौशनी में खुद को पहचानने की ज़रूरत है।
गाँधी से घृणा करने वालों का उनकी समाधि पर सिर झुकाना वीरता क़तई नहीं
- वक़्त-बेवक़्त
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- 31 Jan, 2022

पहला सवाल यह कि वे गाँधी हत्या के विचार से सहमत हैं या नहीं? गाँधी की हत्या आखिर किसी कारण से ही की गई थी न? उनकी हत्या के बाद पूरे भारत में एक मात्र राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लोग थे जिन्होंने खुशी के दिये जलाए थे और मिठाइयाँ बाँटी थीं।
इस रौशनी में सबसे अधिक उन्हें खुद को देखने की आवश्यकता है जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्य हैं या उसके विचार से सहानुभूति रखते हैं। यह मानना कठिन है कि उनमें कभी भी सिर्फ़ अपने आप पर विचार करने की इच्छा नहीं जगती होगी। कोई तो ऐसा क्षण होगा जब वे खुद से मुखातिब हों, अपने जीवन और विचार की समीक्षा करें। वैसे लोग जिनकी निगाह सिर्फ बाहर की तरफ होती है, वो सिर्फ दूसरों को देखते और उनमें दोष खोजते फिरते हैं, वे सबसे श्रेष्ठ लोग नहीं हैं यह तो हम अपनी परंपरा के महान लोगों के माध्यम से ही जानते हैं।